हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की पैदाइश
ख़ुदा तआला हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ने खेती का सामान और बहुत कुछ दिया था। जानवर, बकरियां,
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दिल में यह ख़्याल आया कि ख़ुदा का हम पर बहुत करम है, उसने हमें दुनिया और आख़िरत की नेमत बख़्शी है। अगर वह अपनी रहमत से मुझे एक बेटा इनायत करे तो वह नुबूवत और रिसालत के काम में हमारा वारिस होगा।
ख़ुदा ने उनकी यह नेक ख़्वाहिश पूरी की और उन्हें हज़रत हाजरा के पेट एक लड़का इनायत फ़रमाया।
बाप का दिल बाग़-बाग़ हो गया। हज़रत इब्राहीम के मुंह से निकला : 'अलहम्दुलिल्ला हिल्लज़ी व ह-व-ली अलल किबरि इस्माईल'.
"उस ख़ुदा का शुक्र है जिसने मुझे बुढ़ापे में इस्माईल दिया।"
इस तरह हज़रत इब्राहीम ख़ुदा का शुक्र अदा किया।
ने
बुढ़ापे की औलाद बहुत प्यारी होती है। हज़रत इब्राहीम हज़रत इस्माईल से बहुत मुहब्बत करते थे। हुक्मे इलाही पहुँचा
“ऐ इब्राहीम मां-बेटे को बियाबान में छोड़ और किसी का ख़ौफ़ न कर।"
हज़रत इब्राहीम बेचैन दिल और आंसू भरी आंखें लेकर मक्का की तरफ़ बढ़े। मक्का के क़रीब एक मैदान में हज़रत हाजरा और हज़रत इस्माईल को
छोड़कर घर की तरफ़ बाग मोड़ ली।
बीवी हाजरा ने सब्र के साथ बच्चे को गोद में लिया (वह परेशान थीं), मैदान ख़ुश्क और गर्म था। वहाँ न आदम, न आदमज़ाद। बीवी हाजरा ने रोकर कहा, 'आप मुझे और इस बच्चे को इस बियाबान में किसके सुपुर्द कर रहे हैं और कुछ कहते भी नहीं है ?
हज़रत इब्राहीम का दिल भर आया। आपने फ़रमाया, "वही ख़ुदा तुम्हारी हिफ़ाज़त करेगा जो सारे जहान का निगहबान और हिफ़ाज़त करने वाला है। "
हज़रत हाजरा बोलीं:
'हस्बियल्लाहु व तवक्कलतु अलल्लाह.'
"अल्लाह मेरे लिए काफ़ी है, मैंने अल्लाह ही पर भरोसा किया।" हज़रत इब्राहीम ने मुल्क शाम की राह ली और कुछ ख़ुरमा और एक
छागल पानी उन्हें दिया। मां-बेटे पर नज़र डाल कर ख़ुदा से यह दुआ कि
'रब्बना इन्नी अस्कन्तु मिन जुर्रियति बिवादिन गैरि जी जर इन इन्द बैतिकल मुहर्रम
"हमारे रब, मैंने एक ऐसी घाटी में जो खेती के लायक नहीं, अपनी औलाद का एक हिस्सा तेरे इज्जत वाले घर के पास बसा दिया है। हमारे रब, ताकि वह नमाज़ क़ायम करें, लेकिन लोगों के दिलों को उनकी तरफ़
झुका दे और उन्हें पैदावार की रोज़ी अता कर। शायद वे शुक्र गुज़ार हों।
जब हज़रत हाजरा का पानी और खाजा खत्म हो गया तो बहुत दिलगीर हुईं। बच्चे की प्यास उनसे देखी न जाती थी। समझा की शायद आखिरी वक़्त आ गया है। कोई ख़ुदा के फैसले से कहां तक भाग सकता है। वह पानी की तलाश में दौड़कर सफा पहाड़ पर पहुँची। इधर-उधर नज़र दौड़ाई लेकिन कहीं पानी दिखाई न दिया और कोई आदमी भी नज़र न आया जिससे वह पानी तलब करतीं। फिर वह वहाँ से दौड़कर मरवः पहाड़ पर आयीं और
'अल अतश! अल अतश!' (प्यास! प्यास !)
कहकर ख़ुदा की बारगाह में फ़रियाद की, लेकिन कहीं पानी का निशान न मिला। प्यासे बच्चे का ख़्याल आता तो वह उसके पास पहुँचर्ती और छाती से लगातीं, फिर बच्चे को छोड़कर सफ़ा-मरवः का चक्कर लगातीं। इस तरह उन्होंने सात चक्कर लगाए।
आखिर में हज़रत हाजरा ने बच्चे को देखा कि वह ज़मीन पर अपनी एड़ियां मार रहे थे। ख़ुदा बच्चे के क़दमों के नीचे से पानी का एक चश्मा ने जारी कर दिया था। जब हजरत हाजरा ने पानी का चश्मा देखा तो बोलीं, 'ख़ुदाया तेरी मेहरबानियों और नेमतों का शुक्रिया' !
हज़रत हाजरा ने चाहा कि पानी से छागल भर लें। ग़ैब से आवाज़ आई, “यह पानी रहमते इलाही से है। भर मत। यह कम होने का नहीं है।
यह फ़ैज़ जारी रहेगा। ख़ुदा ने तेरी और तेरे प्यारे की हिफ़ाज़त का यह सामान किया है। यह बच्चा और इसका बाप ख़ुदा का घर बनाएगा और तमाम दुनिया हज और तवाफ़ के लिए आएगी।" इस खुशखबरी को सुनकर वह बहुत खुश हुई। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा।
देख-भाल और परवरिश
क़बीला जरहम के लोग मक्के की राह से तिजारत करने शाम मुल्क जाया करते। इत्तिफ़ाक़ से इस क़बीले के क़ाफ़िले ने मक्के के मैदान में क़ियाम किया और वहीं रात गुज़ारनी चाही। उन्होंने देखा कि परिंदे उड़ रहे हैं। समझा कि यहां कहीं पानी का चश्मा ज़रूरी है। एक शख़्स ने आकर देखा कि एक साफ़ पानी का चश्मा मौजूद है और एक नेक ख़ातून और उसका बच्चा उसके किनारे ठहरे हुए हैं। वह इस जंगल में उन्हें देखकर बहुत हैरान हुआ और पूछा कि तुम कौन हो, जिन्न हो या इन्सान ?
बीवी हाजरा ने फ़रमाया, “ख़ुदा ने अपने फ़ज़्ल से मुझे यह बच्चा इनायत किया है और उसके ही तुफ़ैल से यह चश्मा जारी हुआ है।"
उसने जाकर क़ाफ़िले वालों को खुशख़बरी सुनायी। क़ाफ़िले का सरदार बीबी साहिबा की ख़िदमत में आया और कहा कि अगर हुक्म हो तो हमारी क़ौम यहाँ आकर आबाद हो जाए। इसी तरह आपकी तहाई और वहशत भी कम होगी और आप ख़ुश होंगी।
हज़रत हाजरा ने फ़रमाया, 'अगर मेरी सरपरस्ती क़बूल करो तो जाओ और अपने बाल-बच्चों को ले आओ। अभी थोड़े ही दिन गुज़रे थे कि उसकी क़ौम अपने बाल-बच्चों और जानवरों के साथ हाज़िर हुई और उसी चश्मे के पास आबाद हो गयी। उसने वहाँ मकान बनाये और हज़रत • इस्माईल की परवरिश की ज़िम्मदारी अपने ऊपर ले ली। इसी तरह हज़रत इस्माईल की परवरिश का ग़ैब से इन्तिज़ाम हुआ।
इसी क़बीले में हज़रत इस्माईल की परवरिश हुई। हज़रत जिब्रील ने
हज़रत इब्राहीम को सारे हालात की खबर कर दी। हजरत इब्राहीम साल में एक बार सवार होकर यहां आते थे और अपने बाल बच्चों से मिलकर वापस चले जाते थे। जब हज़रत इस्माईल की उम्र पंद्रह साल की हुई तो बीवी हाजरा का इन्तिकाल हो गया और उन्हें हजरे-अस्वद के पास दफ़्न किया गया हजरत इस्माईल मां की जुदाई से ग़मगीन हुए और उनका दिल वहाँ रहने से उचाट हो गया क्रीम के सरदार और जिम्मेदार लोग हज़रत इस्माईल की खिदमत में हाजिर हुए और उन्हें बड़ी मिन्नत और समाजत से ठहराया और ऊंचे खानदान की एक लड़की से आपका निकाह करा दिया।
हज़रत इस्माईल को शिकार का शौक था। वे अक्सर जंगल और पहाड़ी में शिकार के लिए जाया करते थे। इत्तिफ़ाक़ से एक रोज हजरत इब्राहीम मक्का तशरीफ़ लाए। जब उन्हें मालूम हुआ कि बीवी हाजरा का इन्तिकाल हो गया है तो उन्हें बड़ा ग़म हुआ। घर पर पहुंचे। हजरत इस्माईल की बीवी से हाल पूछा और दरयाफ्त किया, इस्माईल कहां है? हजरत इस्माईल की बीवी हजरत इब्राहीम को पहचान न सकीं। उन्होंने हज़रत इब्राहीम की कोई ताजीम और मेहमानदारी न की। हजरत इब्राहीम ने फरमाया कि इस्माईल शिकार से आए तो मेरा सलाम कहना और मेरा यह पैग़ाम पहुँचा देना कि तेरे दरवाज़े की चौखट ठीक नहीं है और हमें ऐसी चौखट पसंद नहीं है। हजरत इब्राहीम यह कहकर शाम की तरफ रवाना हुए।
हजरत इस्माईल शाम को घर आए। बीवी ने उनसे सब हाल बयान किया और हज़रत इब्राहीम का पैग़ाम उन तक पहुंचाया। हजरत इस्माईल ने फ़रमाया, "घर की चौखट तू ही है, मगर बेअदब और बे सलीक़ा है और मेरे बुजुर्ग बाप को पसंद नहीं उनका इशारा यह है कि मैं तुझे तलाक़ दे दूं।"
हज़रत इस्माईल ने बीवी से अलग होकर एक दूसरी नेक खातून निकाह किया। से
हजरत इब्राहीम जब दूसरी बार मक्का तशरीफ़ लाए, इस नेक खातून ने हज़रत की बड़ी ताज़ीम की और कहा
“मेरा शौहर शिकार के लिए बाहर गया है। लौंडी आपकी ख़िदमत में हाज़िर है। "
जो रोटी तैयार थी, इब्राहीम की ख़िदमत में पेश की और जहां तक बन सका आपकी खातिर की। हज़रत इब्राहीम ने अपनी सवारी ही पर खाया और इस बीवी की ख़िदमत और ख़ूबी देखकर इसे नेक फ़ाल समझा।
चलते वक़्त फ़रमाया, "इस्माईल से कहना कि तेरे घर का आस्ताना बहुत मुनासिब है और हमारी तबियत बहुत खुश हुई।” जब हज़रत इस्माईल शिकारगाह से घर लौटे और अपनी बीवी से मिले तो बीवी ने उन्हें सारे हालात सुनाए । हज़रत इस्माईल ने फ़रमाया
‘ऐ ख़ुशक़िस्मत ! वह मेरा बाप था और उसका इशारा यह है कि इस आस्ताने को क़ायम रखूं और तुझको अपने से जुदा न करूं, और जहां तक हो सके तेरी नाज़बरदारी और ग़मगुसारी करूं।
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