हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम Hazrat Ibrahim alaihissalam.

 हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम Hazrat Ibrahim alaihissalam.

Hazrat Ibrahim alaihissalam

हज़रत इब्राहीम के बाप का नाम आज़र था। उस ज़माने में नमरूद नाम का काफ़िर हुकूमत करता था। वह अपनी जनता के साथ इन्साफ़ करता सखी दाता जैसी उसकी बड़ी खूबी थी।
एक ज़माने के बाद वह शैतान के फंदे में आ गया। गन्दे विचार उसके मन में बैठ गये। हुकूमत करते-करते वह ख़ुदाई का दावेदार हो गया। अपने बुत बनवाकर इबादतख़ानों में रखवा दिये। जनता को आर्डर दे दिया कि वह उसके आगे अपना माथा टेके ।
एक दिन नुजूमियों ने सितारों पर नज़र करके नमरूद से यह अर्ज़ किया कि इस साल इस शहर में एक ऐसा लड़का पैदा होगा जो तेरे देश और धर्म को तबाह करके रख देगा।
नमरूद ने बेचैन होकर हुक्म दिया कि जितने लड़के भी इस जगह पैदा हों, उन्हें क़त्ल कर दिया जाये।


• जब हज़रत इब्राहीम की मां को हमल हुआ तो वह सबके जान जाने के डर से वह घर से बाहर निकल खड़ी हुई। जब वह जंगल में एक सूखी नहर में पहुँचीं तो एक लड़के ने जन्म लिया। लड़का बहुत खूबसूरत था, मां की ममता जागी और वह उसे सीने से लगाये इधर-उधर जाने लगीं।
नहर के पास एक खोह था, लोगें की पहुँच वहाँ तक नहीं हो सकती थी। लड़के को एक कपड़े में लपेटा और रोती हुयी आंखों के साथ उसे छोड़ वह घर की तरफ़ चल पड़ीं।

अपने इस लड़के को देखने के लिए वह खोह में आर्ती, और उनको ज़िंदा देखतीं तो आंखें डबडबा पड़तीं। वह देखतीं कि हज़रत इब्राहीम अलै. एक अंगूठे से दूध और एक शहद पीते हैं और असली हिफ़ाज़त करने वाले अल्लाह की पनाह में बराबर जी रहे हैं।

ऐसी अजीब हालत को देख वह दांतों तले उंगली दबा लेतीं। फिर बच्चे को गले लगातीं, दूध पिलातीं और रोती हुई घर को वापस आ जातीं।

इस तरह जब फुर्सत पार्ती तो उनको दूध पिलाकर वापस लौट आतीं। जब कभी उनके पहुँचने में देर हो जाती तो हज़रत इब्राहीम अपने अंगूठे ही चूसकर अपना पेट भर लेते। सच तो यह है कि मां का दूध पिलाना तो सिर्फ़ एक बहाना था, वरना जिसने पैदा किया था वही उन्हें अपनी निगरानी में खिला-पिला रहा था।

हज़रत इब्ने अब्बास (रजि.) की रिवायत है कि हज़रत इब्राहीम एक दिन में इतना बढ़ते थे कि दूसरे लड़के उतना ही एक हफ़्ता में बढ़ पाते हैं और वह एक हफ़्ते में इतना बढ़ जाते कि दूसरे लड़के उतना ही एक महीना में बढ़ में पाते और एक महीना में वह इतना बढ़ जाते कि दूसरे एक साल में बढ़ पाते। इस तरह दूध पीने की मुद्दत भी गुज़र गयी।
हज़रत इब्राहीम में कुछ सूझ-बूझ पैदा हुई तो एक दिन रात में उनकी मां उन्हें देखने आयीं। हज़रत इब्राहीम ने अपनी मां से पूछा

“इस अंधेरे घर के सिवा और भी कोई दुनिया है?"

"दुश्मनों के डर से तुम्हें यहां छिपा दिया है। मां ने जवाब दिया और बताया, “यहां पर तुम्हें रखने का मक़सद इसके अलावा और कुछ नहीं है कि तुम्हारी जान बची रहे और तुम्हें अपनी निगरानी में पाला-पोसा जा सके। वैसे अल्लाह की बनायी दुनिया बहुत लम्बी-चौड़ी है।"

हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया

'अब तो मुझे इस खोह में आराम नहीं महसूस होता, न मैं अपने रहने लायक़ इस जगह को पाता हूँ। फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम खोह से बार निकल आये।

आसमान पर चमकते सितारे को देखा, बोले

'यही मेरा रब है!'

लेकिन जब वह डूब गया तो फ़रमाया, "मैं डूबने वाले को अपना रब नहीं बनाता।'

फिर जब चमकते चांद पर नज़र पड़ी और उसकी चांदनी में उन्हें मज़ा आया तो फ़रमाया

“यही मेरा रब है और इसी से मैं लौ लगाऊंगा!"

लेकिन जब वह भी डूब गया तो उसके रब होने का यक़ीन भी ख़त्म हो

गया।

जब सुबह हुई और सूरज की किरणें फैल गयीं, तब बोले

" यही मेरा ख़ुदा है, यही सबसे बड़ा है! यह तो इसकी रौशनी और गर्मी से भी ज़ाहिर है।"
लेकिन जब सूरज भी डूबने को हुआ तो हज़रत इब्राहीम फिर सोच में

पड़ गये। बोले "अलावा उस ख़ुदा के जो बे-मिसाल और बे-ज़वाल है, मैं किसी पर

यक़ीन नहीं करता।”

फिर हज़रत इब्राहीम को उनकी मां घर लाय और तमाम बातें उनके बाप को सुनायीं।

आज़र अपने बेटे को देखकर बहुत खुश हुआ करता। उसे इसकी भी

खुशी थी कि उसका बेटा बचा हुआ है।

जब हज़रत इब्राहीम ने मुर्ती को बुरा कहना शुरू किया और उनके पूजने वालों पर लानत भेजनी शुरू की तो नमरूद ने हज़रत इब्राहीम को बुलाया। हज़रत इब्राहीम निडर होकर गए और क़ायदे के मुताबिक़ नमरूद को सज्दा नहीं किया। नमरूद ने बहुत गुस्से से कहा, “तूने मुझको सज्दा क्यों नहीं किया?"

हजरत इब्राहीम कहा, "मैं परवरदिगार के सिवा किसी को सज्दा ने नहीं करता।"

नमरूद ने कहा, "तेरा परवरदिगार कौन है और क्या कहता है ?"

हज़रत इब्राहीम ने जवाब दिया, “वह सबको पैदा करनेवाला है। वही

मारता है और वही जिलाता है।"

नमरूद ने कहा, "मैं भी मार और जिला सकता हूँ, इसलिए इन सबका परवरदिगार हूँ।" फिर उसने दो ऐसे कैदियों को बुलवाया, जिन्हें सज़ा में क़त्ल करना था। उनमें से एक कैदी को उसने मरवा दिया और एक को आज़ाद कर दिया। फिर उसने कहा, "हमने भी एक को जिलाया और एक को मारा। हम हैं परवरदिगार और यही है काम हमारा।"

हज़रत इब्राहीम ने कहा, "मेरा पवरदिगार सुरज को पूरब से निकालता हैं। अगर तू सच्चा है तो पश्चिम की तरफ़ से निकाल । "
नमरूद और उसके साथी इस जवाब से चुप और हैरान रह गए। -से लोग इस मामले को देखकर मुसलमान हुए।

एक दिन हज़रत इब्राहीम ने आज़र से पूछा, “ऐ बाप, यह कैसी मूरतें हैं जिनकी तुम पूजा करते हो और रात-दिन जिनके आगे तुम 'सज्दे करते हो?"

आज़र ने कहा, "ये हमारे ख़ुदा है।"

हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया, “क्या तुम उनकी पूजा करते हो जिनके न कान हैं, न आंखें और जो न तुमको फायदा पहुँचा सकते हैं, न नुक़्सान।'

आज़र ने लाजवाब होकर कहा, “अगर तू हमारे ख़ुदाओं को नहीं

मानेगा तो सज़ा पाएगा और तुझ पर पत्थर बरसाए जायेंगे।'

इसके बाद हज़रत इब्राहीम ने यह पक्का इरादा कर लिया कि वह लोगों को बता देंगे कि बुतों को लोगों के अच्छे-बुरे की कुछ ख़बर नहीं और उनके पूजने में किसी को कुछ फ़ायदा नहीं।

नमरूद की क़ौम की आदत थी कि जब ईद का दिन आता तो हर आदमी अच्छा लिबास पहनता था और उम्दा उम्दा खाने पकाकर बुतों के सामने रखकर ईदगाह जाते थे और उधर से फिर कर इस खाने को अगले साल तक के लिए ज्यादा रोज़ी होने का सबब जानते थे। जब ईद का दिन आया तो सबने हज़रत इब्राहीम को साथ चलने को कहा।

हज़रत इब्राहीम ने सितारों की तरफ़ देखकर कहा, "मैं बीमार हूँ इसलिए तुम्हारे साथ नहीं चल सकता, और दिल में कहा, तुम्हारे बुतों से फ़रेब करूंगा और उनकी बेइज्जती करूंगा।"

जब सब लोग तहखाना ख़ाली करके ईदगाह पहुँचे, हज़रत इब्राहीम भी एकाएक पहुँचे और बुतों से मज़ाक़ में कहा, “ऐसा अच्छा खाना तुमने क्यों नहीं खाया ?"

वे बुत भला क्या बोलते और क्या जवाब देते। फिर तो ख़ुदा के दोस्त
इब्राहीम ने कुल्हाड़ी लेकर सबके सर उड़ा दिए, किसी के हाथ काटे और किसी का कान, मगर बड़े बुत को बचाकर कुल्हाड़ी उसी के गले में डाल दी और बुतखाने का दरवाजा बन्द करके बहुत जल्द वहाँ से निकल गए।

लोग जब ईदगाह से लौटकर तहखाने में दाखिल हुए और सभी छोटे-बड़े पुराने दस्तूर के मुताबिक़ वहाँ पहुँचे तो देखते क्या हैं कि न किसी का हाथ है, न किसी का कान। बड़ी जिल्लत की हालत में पड़े हैं, बिल्कुल मुर्दा।

उसके मुंह से निकला, "किस जालिम का यह सब किया धरा है, और किसने हमारे माबूदों के सर तोड़कर हमें दिली तकलीफ़ पहुँचाई है ?"

हजरत इब्राहीम हमेशा बुतों और बुतपरस्तों पर चोट किया करते थे और उनके शिर्क और बेईमानी को बुरा कहा करते थे। सबको यक़ीन हो गया कि यह सब हजरत इब्राहीम ने ही किया है। सबको गुस्सा आया और वह उनका कत्ल करने के लिए तैयार हो गए। पूरी क़ौम एक राह होकर नमरूद के पास पहुंची और फरियाद की कि इब्राहीम ने तहखाने की हुरमत को बर्बाद कर दिया।

नमरूद ने हज़रत इब्राहीम को बुलाने के लिए आदमी भेजा और बहुत ग़ज़ब और गुस्से से अपने पास बुलवाया।

नमरूद और पूरी क़ौम ने कहा, "ऐ इब्राहीम माबूदों के साथ यह बर्ताव किसने किया है ?" ने

हजरत इब्राहीम ने कहा, “बड़े बुत ने। तुम इज्जतवाले बड़े बुत से पूछो। वह तुमसे छिप नहीं पायेगा। वही तो तुम्हारा बड़ा माबूद है, क्या इतना भी पता न देगा।"

मुशरिक इस बात को सुनकर लाजवाब हो गए और उन्हें बड़ी शर्मिन्दगी हुई। इब्राहीम ने कहा, "तुम तो जानते हो कि यह बुत हर्गिज नहीं बोलते। यह अच्छा और बुरा अपने मुंह से कुछ नहीं कहते।"
हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया ऐसे माबूदों की पूजा से क्या मिलता है। जो इन बेजुबानों को पूजे वह तो बड़ा ही जाहिल है, इससे बहुत से लोग मुसलमान हुए और बहुत से लोग ईमान लाये।

नमरूद द ने जब यह मामला देखा तो हुक्म दिया कि इब्राहीम को क़ैद किया जाए। काफ़िरों ने कहा कि इब्राहीम को आग में जलाओ, इसी तरह से हमारा गुस्सा ठंडा हो सकता है।

कोह के दामन में एक सौ साठ गज़ का मकान बनाया। मुल्क की लकड़ियों को जमा करके उसमें आग लगाई। आग के शोले इतने बुलन्द हुए। कि ऊपर से परिन्दे भी उड़ने की हिम्मत न कर सकते थे और न कोई आदमी उसके नज़दीक जा सकता था कि हज़रत इब्राहीम को आग में ले जाकर डाले। फिर सब काफ़िर हैरान हुए और उनको आग में डालने की तबीरें सोचने लगे। शैतान ने सुझाया कि एक फ़लाख़न बनाओ और दो-तीन खंभे खड़े करो, झूले की तरह झुलाकर इब्राहीम को आग में डाल दो और इस तरह अपने अरमान पूरे करो।

जब हज़रत इब्राहीम को तौक़ और जंजीर में बांधकर फ़लाख़न पर बिठाया गया तो आसमान और ज़मीन के फ़रिश्तों ने रो-रोकर फ़रियाद की कि खुदावन्द, , तेरे खलील के साथ यह कैसा मामला करते हैं। हम इस जुल्म को देखकर बहुत रंजीदा हैं। हमें इजाज़त हो तो उन्हें हम अभी छुड़ा लें और इस तरह तेरा दोस्त दुश्मनों से बच जाए।

हुक्म हुआ कि अगर इब्राहीम तुमसे मदद चाहे तो बहुत बेहतर है, तुम जाकर उसका साथ दो। दो फ़रिश्ते जो हवा और पानी पर मुक़र्रर थे, हज़रत इब्राहीम के पास आए और कहा कि अगर आप हुक्म दें तो हवा और पानी इस आग को पल भर में बुझा दें। लेकिन हज़रत इब्राहीम ने इसे क़बूल नहीं किया, उनकी हालत देखकर फ़रिश्ते बहुत रंजीदा हुए। जब हज़रत इब्राहीम फ़लाख़न से बाहर हुए, जिब्रील अमीन फ़ौरन फ़िज़ा से हाजिर हुए और कहा,

'कुछ ज़रूरत हो तो कहो, मैं इस आग से इन काफ़िरों को जला सकता हूँ और तुम्हें इन शोलों से बचा लूँगा।"

हज़रत इब्राहीम ने कहा, “मुझे तुमसे कुछ काम नहीं। जो ख़ुदा की

मर्ज़ी है वह पूरी होकर रहेगी।" जिब्रील ने कहा, "फिर ख़ुदा ही से सवाल करो और अपनी मुसीबत

उससे बयान करो।"

हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया कि वह ख़ुदा जानता है, मेरे कहने से क्या हासिल। इस तरह जब ख़ुदा-ए-बेनियाज़ ने देखा कि इब्राहीम तवक्कुल की राह में क़ायम है तो फ़रमाया :

'या नारू कूनी बरदंव व सलामन अला इब्रहीम'.

"ऐ आग, तू इब्राहीम के लिए ठंडी हो जा और सलामती बन जा।"

हज़रत इब्ने अब्बास से नक़ल है कि कलामे इलाही में लफ़्ज़ 'सलाम' न होता तो मारे ठंडक के इब्राहीम को चैन न मिलता।

फ़रिश्तों ने हज़रत इब्राहीम का बाज़ू पकड़कर निहायत आराम से ज़मीन पर बिठाया ही था कि उसी वक़्त बहिश्त के रिज़वान ने ठाठदार कपड़े लाकर पहनाए और उनके आसपास बीस-बीस गज़ तक फूल, सब्ज़े, कलियों और ख़ुश्बूदार फूलों से अजीब बाग़ बना दिया। एक मीठा सोता भी वहाँ जारी हो गया। हज़रत इब्राहीम पर ख़ुदा का बड़ा फ़ज़्ल हुआ कि लज़ीज़ खाना सुबह-शाम पहुँचाया करे, ताकि मेरा प्यारा खुशी और बेफ़िक्री के साथ खाए।

जब सात रोज़ इस तरह गुज़र गए तो नमरूदियों ने चाहा कि देखें कि आग बुझी है या नहीं। नमरूद भी एक ऊंचे महल पर चढ़कर हमेशा देखता रहता था। उसे डर था कि कहीं इब्राहीम ज़िंदा न रह जाए इसलिए कि अगर वह सही-सलामत आएगा तो मुझ पर और मेरे मुल्क पर बड़ी ही आफ़त लाएगा। जब कभी वह अपने दिल की बात अपने मुसाहिबों के सामने कहता तो फिर हरेक की तसल्ली के लिए साथ ही यह भी कह देता कि इंसान क्या है कि जलकर राख न हो जाए, इस आग में तो अगर संगखारा भी डाल दिया जाये तो वह भी पिघलकर बह जायेगा।
एक दिन नमरूद ने बहुत ग़ौर से अपने महल से देखा। इब्राहीम के चारों तरफ़ तो गुलो-रेहान हैं और आग की लपटों की बजाय बाग़ दिखाई देता है। और मीठे पानी का सोता बह रहा है और हर दम वहाँ ऐशो- -आराम ही है, तो वह बहुत हैरान और परेशान हुआ।

बोला, “ऐ इब्राहीम, तू ऐसी तेज़ आग से किस तरह बच सका ? और यह बाग़ और नेमत किसने फ़राहम किए।"

हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया "यह तो बेमिसाल ख़ुदा की क़ुदरत का छोटा-सा करिश्मा है। उसका फ़ज़्ल और इनायत हो तो ऐसा काम नामुम्किन नहीं।"

नमरूद बोला "जिसकी क़ुदरत की यह अदना निशानी है, वह सच में

बड़ा परवरदिगार है। "

हज़रत इब्राहीम राख के पहाड़ों से निकलकर बाहर तशरीफ़ लाए और नए सिरे से नमरूद को नसीहत करने लगे। नमरूद ने थोड़े दिन की मुहलत मांगी और मामले पर सोचने का वादा किया। उसने हामान से जो उसका वज़ीर था सलाह ली और ईमान लाने का इरादा जाहिर किया।

उस मलऊन हामान ने कहा, “इतने ज़माने तह तो आपने ख़ुदाई की,

अब बंदगी इख़्तियार करेंगे और दुनिया भर में अपने को रुस्वा करेंगे।'

जब हज़रत इब्राहीम ने मोहलत गुज़र जाने के बाद ईमान लाने की मांग की तो नमरूद ने निहायत चापलूसी और नरमी से कहा, 'ईमान लाना तो मेरे लिए बहुत मुश्किल है, मगर हाँ तेरे परवरदिगार के लिए एक बड़ी क़ुरबानी देने के लिए मैं तैयार हूँ।'

हजरत इब्राहीम ने फ़रमाया, दरबार क़बूल नहीं होती।" में "बग़ैर ईमान के कोई क़ुरबानी ख़ुदा के

नमरूद ने चार हजार गायें और बहुत सी बकरियों और ऊंटों को एक बड़े मैदान में क़ुर्बान किया, लेकिन हामान की शैतानी की वजह से उसका ठिकाना दोज़ख ही हुआ।
नमरूद की तबाही

हज़रत इब्राहीम ने नमरूद से कहा कि तू बुरे काम छोड़ दे और पशेमान होकर ख़ुदा के आगे आजा। ख़ुदा-ए-तआला ने तुझे चार सौ साल से बादशाहत दे रखी है और इसी तरह उसने मुझे ऐसे मोजज़े दिए जो दीन हक़ पर गवाह है और तू है कि अब तक अपने कुफ्र से बाज़ न आया और अपनी नादानी और हठधर्मी से ख़ुदाई का दावा किए चला जा रहा है। जान ले यह ख़ुदा का लश्कर इतना ज्यादा है कि अन्दाज़ा नहीं कर सकते और तुझे तो ग़ारत करने के लिए एक अदना लश्कर काफ़ी है।

नमरूद ने कहा मैं नहीं समझता कि ज़मीन पर मेरे सिवा कोई दूसरा बादशाह है और मेरी बारगाह के सिवा कोई दूसरी बारगाह है। अगर आसमानी बादशाह की फ़ौज है तो उससे कहो कि वह मुझ पर भेजे और फिर मेरी लड़ाई और ताक़त का तमाशा देखे।

हज़रत इब्राहीम ने दुआ की।

हज़रत जिबील नाज़िल हुए और कहा कि नमरूद से कहो कि हमारी फ़ौज आ पहुँची, तू तैयार हो जा। और अपनी फ़ौज लेकर मैदान में जंग कर।

तीन रोज़ की मोहलत में नमरूद की फ़ौज बुला ली गई। एक मैदान में सब जमा हुए। चौथे रोज़ नमरूद की फ़ौज के मुक़ाबले में तन्हा हज़रत इब्राहीम सामने आए। उन्हें अकेला देखकर लोगों ने कहा, "इब्राहीम, वह फ़ौजे आसमानी कहां है ? अब तुझ पर आफ़त आने में कुछ भी देर नहीं।"

अभी बातचीत हो ही रही थी कि एकाएक मच्छरों की फ़ौज ज़ाहिर हुई जिसकी वजह से सूरज की रौशनी छिप-सी गई। नमरूद घबरा गया। लश्कर पर भी हैरत तारी हो गई। नमरूद ने हुक्म दिया, 'नक़्क़ार बजाकर मच्छरों को भगा दें।'

जब मच्छरों की आवाज़ कानों में आई, लोगों के होश गुम हो गए।
तमाम फ़ौज घबरा गई। एक गूंज थी, एक शोर था जो उभरा आ रहा था। छोटा था या बड़ा हरेक हैबते-इलाही से डर गया। एक-एक आदमी पर लाखों मच्छर पिल पड़े। मच्छर क्या थे एक काली बला थी जो सर से पांव तक चिमट रही थी।

लोगों के बदन पर गोश्त और ख़ून तक नहीं छोड़ रही थी। हज़ारों आदमी और जानवर तबाह हुए। नमरूद अपने महल में भागकर औरतों में जा छिपा। इतने में एक लंगड़ा मच्छर आया जिसे नमरूद ने अपनी औरतों को दिखाया भी। मच्छर तेज़ी से नाक की राह से नमरूद के दिमाग़ तक जा पहुँचा और अपनी सूंड को उसके भेजे में चुभा दिया। नमरूद का सोना और आराम करना सब रुख्सत हो गया। वह दिन-रात अपना सर पीटता रहता, जब तक लोग उसके सर को कूटते, कुछ दर्द में कमी महसूस होती और बग़ैर कूटे चैन न मिला। जो भी उसकी मजूलिस में आता तो ज़मीनबोसी के बदले उसके सर पर धौल लगाता। इस तरह नमरूद को ख़ुदा के ग़ज़ब ने जकड़ लिया। चालीस दिन के बाद वह इसी दर्द की वजह से हलाक हुआ।

इसके बाद हज़रत इब्राहीम ने ख़ुदा के हुक्म से नुल्क शाम की तरफ़ हिजरत की। लोगों की नाफ़रमानी की वजह से उन्हें यह हिजरत करनी पड़ी। मिस्र में उन्होंने हज़रत सारा को अपने साथ लिया। लोगों ने मिस्र के हाकिम को खबर दी कि हज़रत सारा बहुत हसीन व जमील हैं और अपने हुस्न व जमाल में यक्ता और बेमिसाल हैं। मिस्र के बादशाह ने हज़रत इब्राहीम से पूछा कि मैं इस औरत को हासिल करना चाहता हूँ तेरा इस औरत से क्या रिश्ता है।

हज़रत इब्राहीम ने सोचा कि अगर मैं कहता हूँ कि यह मेरी बीवी है तो वह मुझे मारना चाहेगा। इसलिए हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया, "यह मेरी बहन है (दीन के रिश्ते से) "। इस तरह उनकी जान बची।

ने जब उस मरदूद ने हज़रत सारा को अपने सामने बुलाया तो उन्हें देखते ही उसके होश गुम हो गये। उस बेअदब ने उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाना चाहा
तो हज़रत सारा की दुआ से उसके दोनों हाथ शल हो गये और दर्द की वजह से उसका सारा जिस्म बेकल हो गया। उसने कहा, "ऐ औरत मुझ पर यह क्या जादू कर दिया।"

हज़रत सारा ने फ़रमाया, “तेरी बदनीयती की वजह से ख़ुदा ने तुझे सज़ा दी है ?"

उस मलऊन ने कहा, “अगर मैं तेरी दुआ से तंदुरुस्त हो गया तो

हरगिज़ तुझ पर बदनीयती से हाथ न डालूंगा।"

हज़रत सारा ने ख़ुदा की बारगाह में दुआ की। ख़ुदा ने उसको अच्छा कर दिया, लेकिन उसकी नीयत फिर ख़राब हो गई। ख़ुदा ने उसके दोनों हाथ अपाहिज कर दिए। वह बड़ी मिन्नत से गिड़गिड़ाने लगा। हज़रत सारा की दुआ से उसकी तकलीफ़ दूर हुई। नमरूद की नीयत तीन बार ख़राब हुई और उसके हाथ शलय हुए मगर हज़रत सारा की दुआ से उसको तंदुरुस्ती हासिल हुई। आखिर में सच्चे दिल से वह बुराई से दस्तबरदार हो गया और हाजरा नामी खातून को नज़ किया। यही हज़रत हाजरा हैं जिनसे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए। वहाँ से हज़रत इब्राहीम ने मुल्क शाम का इरादा किया और फ़लिस्तीन में दमिश्क़ के इलाक़े में क़ियाम फ़रमाया। 

मेरे भाइयों आपको ये हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का वाक्य कैसा लगा हमे कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं फिर मिलते

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Hazrat Ali Raziallahu anhu Hazrat Ali golden words

मेरे मोहतरम मेरे अजीज दोस्त एवं भाइयों अस्सलाम वालेकुम आज मैं आपको बताने जा रहा हूं हजरत अली रजि अल्लाह आल्हा की खूबसूरत और बेहतरीन हर्षदा उ...

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