हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम
कहते हैं कि हज़रत सुलैमान हज़रत दाऊद की उस बीवी से पैदा हुए जो पहले ओरिया की बीवी या मंगेतर थी। हज़रत सुलैमान की पेशानी से बुजुर्गी और बड़ाई की निशानियां बचपन ही से ज़ाहिर थीं। कम उम्री में ही अजीब व ग़रीब बातें उनसे ज़ाहिर होती थीं। हैरत की बात यह है कि हज़रत दाऊद उनके बचपन ही में बड़े-बड़े कामों में उनसे सलाह-मश्विरा करते थे। मिसाल के तौर पर उस क़िस्से को लीजिए जो क़ुरआन में भी बयान हुआ है। । दो आदमी थे - यूहन्ना और ऐलिया। यूहन्ना की बकरियों ने ऐलिया का खेत खा लिया। मुक़द्दमा हज़रत दाऊद के सामने पेश हुआ। खेत के नुक़्सान की कीमत का अन्दाज़ा किया गया। वही क़ीमत तमाम बकरियों की समझी गई। हज़रत दाऊद ने यूहन्न की तमाम बकरियां ऐलिया को दिला दीं।
यूहन्ना अदालत से रोता हुआ बाहर निकला। हज़रत सुलैमान को जब मालूम हुआ कि हज़रत दाऊद ने इस तरह का फ़ैसला किया है तो उन्होंने फ़रमाया कि जनाब ने बहुत अच्छा इन्साफ़ किया है लेकिन अगर मुझको इस मुक़द्दमें में फ़ैसला करने का हुक्म दें तो मैं ऐसा फ़ैसला करता कि दोनों फ़रीक़ राज़ी हो जाते।
हज़रत दाऊद को जब यह ख़बर पहुँची तो अपने बेटे को बुलाकर पूछा, तुम इस मामले में क्या फैसला करते ?'
हज़रत सुलेमान ने कहा, “आपने जो कुछ फ़ैसला किया है वह इन्साफ़ के बिल्कुल मुताबिक़ है, लेकिन अगर खेतवाले को बकरियां सौंप कर कहा जाता कि तू इन बकरियों के दूध और बाल वग़ैरह से फ़ायदा उठा और बकरी वाले से कहा जाता कि तू इस खेत को पानी दे और देखभाल कर, यहां तक
कि वे पहली हालत को पहुँचे तो मुद्दई को खेत देकर अपनी बकरियां ले ले तो ज्यादा मुनासिब था।
हज़रत दाऊद को यह फ़ैसला पसन्द आया और पहले फ़ैसले को रोक कर हज़रत सुलैमान की तज्वीज़ के मुताबिक हुक्म सादिर किया। दोनों फरीक़ ख़ुश होकर दुआयें देते हुए चले गये।
जब हज़रत सुलैमन हज़रत दाऊद के बाद बादशाह हुए तो अल्लाह तआला ने इन्सान और जिन्न, जानवर और परिन्द और हवा तक पर उनको काबू दे दिया ।
जिन्न उनके लिए गोता लगाते और इसके अलावा और बहुत से काम करते थे। ख़ुदा ने उन्हें चिड़ियों की बोली का इल्म भी दिया था।
बैतुल-मकदस की तामीर
हज़रत दाऊद ने बैतुल मक़िदस की बुनियाद डाली थी, लेकिन उसकी तामीर हज़रत सुलैमान के ज़रिये मुकम्मल हुई। हज़रत सुलैमान ने अपनी बादशाहत के ज़माने में बड़े-बड़े कारीगरों और फ़नकारों को जमा किया और एक शहर की बुनियाद डाली। देवों को खानों में भेजा कि वे जवाहर, याक़त, फ़ीरोज़ा ज़मुर्रद, चांदी और सोना वग़ैरह निकाल कर लाए। कुछ जिन्नों को भेजा गया कि दरिया में ग़ोता लगाकर मोती निकालें। एक फ़ौज पत्थर लाने के लिए मुक़र्रर की गई। जब सामान इकट्ठा हो गया, तब संगतराशों ने सफ़ेद, हरे और पीले पत्थर मुनासिब तरतीब से लगाकर मस्जिद की चारदीवारी तैयार की और उसके खम्भे निहायत साफ़ पत्थरों से खड़े किए गये। छत को मोती और आबदार जवाहर से सजाया गया, जिसकी वजह से रात में भी इबादतखाने के अन्दर रौशनी रहती थी। शहर की बुनियाद में सफ़ेद पत्थर इस्तेमाल किए गए और बारह बुर्ज बनाए गये। जब इबादतखाना तैयार हो गया तब हज़रत सुलैमान ने बनी इसराईल के अच्छे और बुजुर्ग लोगों को हुक्म दिया, "यह घर ख़ास अल्लाह के लिये बना है। यह हमेशा आलिमों और वलियों से आबाद रहे। एक पल के लिये भी यह ख़ील और सुनसान न
हो।" एक मुद्दत तक शहर और इबादतगाह की रौनक़ कायम रही, लेकिन जब बख़्त नम्र ने मुल्क शाम पर हमला किया तो उसने इस शहर को वीरान कर डाला। मोती और जवाहर मस्जिद से उखाड़ कर अपने यहां ले गया।
हज़रत सुलैमान बड़ी शान के साथ अदालत करते थे। आप दिन ढलने तक अदालत में रहते और इसके बाद दीवाने मुअल्ला में तशरीफ़ ले जाते। आपके बावरचीख़ाने में सात सौ गाड़ी आटे की रोटी और उसी के मुताबिक रंग-बिरंग के सालन पकते और लोगों को खाना खिलाया जाता और खुद हज़रत सुलैमान का हाल यह था कि ज़म्बील (थैला) बनाकर बेचते और जौ की रौटी ग़रीबों के साथ बैठकर खाते।
सबा की रानी बिल्कीस
हज़रत सुलैमान ने हरेक परिन्दे को एक-एक मुहिम के लिये मुक़र्रर किया था। हुदहुद के ज़िम्मे पानी का पता लगाना था। एक दिन हज़रत सुलैमान अपने तख़्त से नमाज़ के लिए उतरे और लश्कर को हुक्म दिया कि खाना पकाया जाये। हुदहुद ने सोचा कि जब तक हज़रत सुलैमान नमाज़ में हैं तब तक मैं उड़कर इधर-उधर का हाल मालूम करूं।
वह उड़कर एक शहर में पहुँचा जो नहरों और बागों से आबाद था। इमारतें उसकी बहुत खूबसूरत थीं।
हुदहुद वहाँ का सब हाल मालूम करके वापस हुआ।
इधर हज़रत सुलैमान ने जब हुदहुद को गायब पाया तो पूछा कि हुदहुद कहां है कि फ़ौज प्यासी है और हुदहुद मौजूद नहीं है जो पानी का पता लगाये।
हज़रत सुलैमान को गुस्सा आया और उन्होंने फ़रमाया कि अगर हुदहुद ने कोई ठीक वजह बयान न की तो मैं उसको क़ैद करूंगा या उसे जिब्ह कर डालूंगा। उक़ाब को हुदहुद की तलाश में भेजा। उसने हुदहुद को सबा की. तरफ़ से आते हुये देखा। फिर उसको सुलैमान की खिदमत में हाज़िर किया।
हज़रत सुलैमान ने पूछा, "तू कहां गया था ?"
हुदहुद ने कहा, “मैं ऐसी ख़बर लाया हूँ जो आपको नहीं मालूम। मैं सबा से आपके लिये एक सच्ची ख़बर लेकर आया हूँ। मैंने वहाँ एक औरत को लोगों पर हुकूमत करते देखा। उसे सब कुछ हासिल है। उसके पास एक बड़ा तख़्त है। मैंने उसे और उसकी क़ौमवालों को देखा कि वे अल्लाह को छोड़कर सूरज को सज्दा करते हैं। शैतान ने उन्हें ग़लत कार्यों में लगा रखा है, यहां तक कि वे इससे बेख़बर हो गये कि अल्लाह के सिवा किसी को सज्दा नहीं करना चाहिए और आसमान ज़मीन की छिपी चीजें वहीं निकालता है और खुली छिपी सारी बातें उसे मालूम हैं।
हज़रत सुलैमान ने कहा, "अभी हम देख लेते हैं कि तूने सच कहा है। या तू झूठ बोल रहा है।"
अपने फिर एक ख़त लिखा
इन्नहु मिन सुलैमान न व इन्हू बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, अल्ला तअलू अलैया व आ तूनी मुस्लिमीन.
"यह सुलैमान की तरफ़ से है और यह है अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहमवाला है, यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और मुस्लिम होकर मेरे पास हाज़िर हो जाओ।
यह ख़त हज़रत सुलैमान ने हुदहुद को दिया और कह कि मरा वह ख़त
ले जा और बिल्क़ीस के आगे डाल दे। देखो वहाँ से क्या जवाब आता है।
हुदहुद ख़त लेकर उड़ा और सबा जा पहुँचा।
बिल्क्रीस अपने महल में आराम कर थे। हुदहुद झरोखे से अन्दा दाखिल हुआ है महल के दरवाज़े बन्द हज़रत सुलैमान का बिल्क्रीस के आगे डाल दिया। जब बिल्कीस नींद से बेदार हुई और ख़त देखा ती बड़ी हैरानी कि यह ख़त कौन लाया है। उसने इधर-उधर देखा तो निगाह हुदहुद पर पड़ी, वह समझ गई कि ख़त यही हुदहुद लाया है। जब
ख़त देखा तो उसपर हज़रत सुलैमान की मुहर पड़ी हुई थी। उसने अपने दरबारवालों को ख़त पढ़कर सुनाया और कहा, “इस मामले में मुझे राय दो। मैं तो किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती जब तक कि तुम हाज़िर न हो, उन्होंने कहा, "हम ताक़तवाले हैं और सख़्त लड़नेवाले हैं। अब आप जैसा हुक्म दें, यह आपको इख़ितयार है। "
बिल्कीस ने कहा, "जब बादशाह किसी शहर में दाख़िल होते हैं तो उसे तबाह कर देते हैं और वहाँ के इज़्ज़तवालों को ज़लील करते हैं। मैं उन्हें कुछ तोहफ़ा भेजती हूँ, फिर देखती हूँ कि हरकारा क्या खबर लेकर आता है। सबको यह बात पसन्द आई। फिर बिल्क़ीस ने सैकड़ों गुलाम और लौंडियां, याकूत और सोने-चांदी की ईटें तोहफ़े के तौर पर भिजवाईं और अपने एलची से कहा, "यह सब तोहफ़ा देकर वापस आओ। अगर वह ग़रूर और घमंड की बातें करे तो समझना कि वह बादशाह है, फिर उससे मत डरना, बल्कि दिलेरी से बात करना और अगर वह नर्मी से बात करे और मेहरबानी से पेश आये तो समझना कि वह पैग़म्बर है और फिर अदब से बातचीत करना ।
उधर हज़रत जिब्रील ने हज़रत सुलैमान को इन तमाम बातों की ख़बर दे दी। हज़रत सुलैमान ने जिन्नों को हुक्म दिया कि एक कुशादा मैदान में जिस तरफ़ से बिल्क्रीस का ऐलची आता है सोने-चांदी की ईंटों का फ़र्श बिछाएं, जिन्न और इंसान अलग-अलग सफ़ बांधकर खड़े हों और ज़मीन के और दरियाई जानवर फ़र्श के किनारे बांधे जाएं।
हज़रत सुलैमान ने अपना तख़्त उस फ़र्श पर बिछाया, फिर हज़ारों कुर्सियां आमने-सामन तरतीब से रखवाईं जिस पर बनी इसराईल के बड़े-बड़े लोग और आलिम अपने-अपने दरजों के मुताबिक़ बैठे।
परिन्दों ने अपने परों से साया किया। जब बिल्क़ीस का दूत पहुँचा तो हैबत के मारे उसका क़दम आगे न उठता था। जब वह हज़रत सुलैमान के पास पहुँचा तो आप बहुत खुश अफ़्लाक़ी और नरमी से पेश आए। उसने बड़े ही अदब से बिल्क्रीस का तोहफ़ा आपकी खिदमत में पेश करना चाहा।
हज़रत सुलैमान ने फ़रमाया, “तुम अपने माल से मुझे क्या मदद पहुँचाओगे। जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं बेहतर है जो तुम्हें मिला है। लौट जाओ, हम ऐसे लश्कर लेकर हमला करेंगे जिनका मुक़ाबला उनसे न हो सकेगा और हम उन्हें ज़लील करके निकाल देंगे।'
दूत सबा वापस गया और जाकर कहा, “सुलैमान सिर्फ़ बादशाह नहीं है, बल्कि वह तो ख़ुदा का पैग़म्बर है। हम उसके मुक़ाबले की ताक़त नहीं रखते।"
बिल्क़ीस ने हज़रत सुलैमान के पास चलने का इरादा किया और अपने तख़्त को महल में रखकर उसके सब दरवाज़े बन्द कर दिए और उनमें मज़बूत ताले लगा दिए गए। पहरेदार हिफ़ाज़त के लिए मुक़र्रर किए गए। फिर वह बड़ी शान-शौकत के साथ सफ़र के लिए रवाना हुई।
कई मंज़िलें तय करने के बाद वह हज़रत सुलैमान के लश्कर के क़रीब पहुँची।
हज़रत सुलैमान को जब रानी के आने की खबर मिली तो आपने मज्लिस वालों से फ़रमाया कि तुम में कौन है जो बिल्क़ीस के तख़्त को उसके यहां पहुँचने से पहले ला दे। जिन्नों में से एक बड़े ही ताक़तवर शख़्स ने कहा कि "मैं यहां से आपके उठने से पहले तख़्त ले आऊंगा। मैं ताक़तवर हूँ और अमानतदार भी हूँ।”
हज़रत सुलैमान सुबह से दिन ढलने तक मज्लिस में बैठे थे। आपने कि “इससे भी पहले तख़्त आ जाए।" फ़रमा
एक शख़्स ने जिसे किताब का इल्म था, कहने लगा, “मैं आपकी पलक झपकने से पहले ही तख़्त ले आऊंगा।"
फिर क्या देखते हैं कि बिल्कीस का तख़्त सामने रखा हुआ है। आपने फ़रमाया, "यह मेरे रब का फ़ज़्ल है। वह मुझे आज़माता है कि मैं उसका शुक्रगुज़ार होता हूँ या नाशुक्रा। जो शुक्र अदा करता है अपने ही लिए करता
है और जिस किसी ने नाशुक्री की तो मेरा रब बेपरवाह और करीम है।" हजरत सुलैमान ने हुक्म दिया कि सब्ज़ जवाहरात की जगह सुर्ख और सुर्ख की जगह सब्ज़ जवाहर तख़्त में जड़ दिए जाएं।
हज़रत सुलैमान ने एक ऐसी मज्लिस सजाई जो अपनी मिसाल आप थी। बिल्कीस हज़रत सुलैमान के पास पहुँची। उसने अपने तख़्त की तरफ़ देखा। पूछा, "क्या आपका तख़्त ऐसा ही है?" उसने कहा कि यह तो जैसे वही है। और हमको तो इससे पहले ही इल्म हासिल हो गया था और हम मुस्लिम हो गए।
हज़रत सुलैमान बिल्क़ीस की समझदारी से बहुत खुश हुए। फिर बिल्क़ीस से कहा गया कि महल में चलिए। महल कुछ इस तरह तैयार कराया गया था कि बीच में साफ़-सुथरे पानी से भरा हुआ चमकता हुआ हौज़ था, उसमें रंग-बिरंगी मछलियां थीं। तमाम आंगन के मुंह पर सफ़ेद चमचमाता शीशा जमा हुआ था। इस तरह कोई अनजाना देखता तो उसे पानी का समझता। चुनांचे जब बिल्क़ीस महल में जाने लगी तो उसने भी उसे देखकर पानी का हौज़ समझा और उसमें उतरने के लिए अपनी पिंडलियां खोल दी।
हज़रत सुलैमान ने कहा, “यह तो महल है जिसमें शीशे जड़े हुए हैं। "
बिल्क़ीस ने कहा, “ऐ मेरे रब, मैंने अपने आप पर बड़ा जुल्म किया, अब मैं सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के हवाले करती हूँ जो सारे जहां का रब है।"
कहते हैं कि हज़रत सुलैमान ने बिल्कीस के साथ निकाह कर लिया।
हज़रत सुलैमान की वफ़ात
कहते हैं कि हज़रत सुलैमान जब ख़ुदा की बंदगी में लगे होते तो हर दिन एक दरख़्त या पौधा अपने गुण बयान करता कि मैं फ़लां-फ़लां रोग की दवा हूँ और मुझमें यह खासियत है।
हज़रत सुलैमान उनको लिखवाते थे।
एक दिन एक दरख़्त सामने आया। उसने सलाम करके कहा कि मेरी ख़ासियत तेरे मुल्क और सल्तनत की खराबी है। इसके बाद अल्लाह तआला ने वह्य नाज़िल की, “ऐ सुलैमान, तुम्हारे इन्तिकाल का वक़्त क़रीब आ गया है, अब आख़िरत के सफ़र की तैयारी करो।"
हज़रत सुलैमान ने वसीयत की और जो कुछ लिखाना था लिखा चुके, तब ख़ुदा की जनाब में दुआ की कि मेरी मौत की ख़बर जिन्नों और शैतानों को एक साल तक न होने पाए ताकि जो काम मैंने उन्हें सौपे हैं वे पूरे हो जाएँ।
इसके बाद गुस्ल करके पाकीज़ा लिबास पहना और इबादतखाने में तशरीफ़ ले गए और लाठी पर जिस तरह थकावट के वक़्त टेक लगाते थे टेक लगाया। उसी वक़्त आपका वक़्त पूरा हो गया और आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली गई। हज़रत सुलैमान जब इबादतख़ानों में होते और इबादत में लगे होते तो कारिन्दे उस मुद्दत में मुल्क के कार्यों को संभालते थे और शैतान इबादत के वक़्त सामने न देख सकते थे। इस तरह देवों और जिन्नों की अगर आप पर निगाह पड़ती भी तो वे समझते कि आप इबादत में खड़े हैं, इसलिए वे मेहनत से काम बराबर करते रहे।
जब एक साल पूरा हुआ और दीमक ने लाठी की जड़ खा ली तो हज़रत सुलैमान गिर पड़े। तब जिन्नों और देवों को आपके इन्तिक़ाल की ख़बर हो सकी। इस तरह यह बात खुल गयी कि ग़ैब की खबर जिन्नों को मालूम नहीं होती। अगर वे ग़ैब जानते तो साल भर मेहनत-मशक़्क़त क्यों करते।
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