Hazrat Ali Raziallahu anhu Hazrat Ali golden words

मेरे मोहतरम मेरे अजीज दोस्त एवं भाइयों अस्सलाम वालेकुम आज मैं आपको बताने जा रहा हूं हजरत अली रजि अल्लाह आल्हा की खूबसूरत और बेहतरीन हर्षदा उम्मीद है आप सब को यह पसंद आएगा और आप से दुआ की दरख्वास्त है जितना हो सके इस पोस्ट को शेयर करें लाइक करें कमेंट करें और हमें बताएं कि हमारा यह पोस्ट आपको कैसा लगा जजाकल्लाह खैर
Hazrat Ali Raziallahu anhu Hazrat Ali golden words



अमल से बढ़ कर उस की कबूलिय्यत का एहतिमाम करो, इस लिये कि परहेज़ गारी के साथ किया गया थोड़ा अमल भी बहुत होता है और जो अमल मक़बूल होदोस्तों जाए वोह कैसे थोड़ा होगा 






 ईद के दिन फ़रमाया ) हर वोह दिन जिस में अल्लाह पाक की ना फ़रमानी न की जाए हमारे लिये ईद  दिन है।
 







  मैं तुम पर दो चीज़ों से बहुत जियादा ख़ौफ़ज़दा रहता हूं : (1) ख़्वाहिश की पैरवी और (2) लम्बी उम्मीदें 
  








जो शख़्स येह गुमान रखता है कि नेक आ' माल अपनाए बिगैर जन्नत में दाखिल होगा तो वोह झूटी उम्मीद का शिकार है







 खर्च करो, तश्हीर (Show Off) न करो और खुद को इस लिये बुलन्द न करो कि तुम्हें पहचाना जाए और तुम्हारा नाम हो बल्कि छुपे रहो और खामोशी इख़्तियार करो, सलामत रहोगे।
 

Hazrat Ali Raziallahu anhu Hazrat Ali golden words



 इन्सान का क़द 22 साल जब कि अक्ल 28 साल की उम्र तक बढ़ती है, इस के बाद मरते दम तक तजरिबात का सिल्सिला रहता है ।







 गुनाहों की नुहूसत से इबादत में सुस्ती और रिज़्ज़ में तंगी आती है। में




बन्दा बे सब्री कर के अपने आप को हुलाल रोज़ी से महरूम कर देता है और इस के बा वुजूद अपने मुक़द्दर से जियादा हासिल नहीं कर पाता ।





 जिस “तक्लीफ़” के बाद “जन्नत" मिलने वाली हो वोह “तक्लीफ़" नहीं
  और जिस “राहत" का अन्जाम "दोज़ख़" पर हो वोह "राहुत" नहीं ।







(10) अपनी राय को काफ़ी समझने वाला ख़तरे में है।


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Zannat ka rasta Zannat kaha hai

 अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाते हैं:

तर्जुमाः यह दीन (इस्लाम और इसके तमाम अहकाम) मेरा रास्ता है जो कि (बिल्कुल) सीधा रास्ता है। सो इस राह पर चलो और दूसरी राहों पर मत चलो कि वे राहें तुमको अल्लाह की राह से जुदा कर

देंगी। (सूरः अनआम आयत153)।     


फायदा    इस    मुबारक आयत से मालूम हुआ कि अल्लाह का दीन एक है  बाकी मज़हब और गुमराही के रास्ते बहुत हैं, सिर्फ अल्ला दीन यानी इस्लाम में नजात (मुक्ति) है, दूसरे किसी में नहीं।                              

                         Zannat ka rasta

Zannat ka rasta

 हदीसः चुनाँचे हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि जनाब रसूलुल्लाह सल्ल0 ने हमारे सामने एक लकीर खींची और फ़रमाया यह अल्लाह का रास्ता है। फिर आपने उस लकीर के दाएँ और बाएँ बहुत-सी लकीरें खींचीं और फ़रमाया, ये भी रास्ते हैं और इनमें से हर एक रास्ते से शैतान गुमराह करता है। फिर · आपने ऊपर जिक्र हुई (उपरोक्त) आयत पढ़कर ( अपनी इस मिसाल को स्पष्ट किया। (इब्ने हब्बान मवारिदुज्ज़मुआन)

 

Zannat ka rasta


हदीसः हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि एक दिन रसूलुल्लाह सल्ल0 हमारे सामने तशरीफ़ लाए और फ़रमायाः तर्जुमाः मैंने ख़्वाब में देखा मानों कि जिब्राईल अलैहिस्सलाम मेरे


सिरहाने के पास और मीकाईल अलैहिस्सलाम मेरे पाँव के पास। उन दोनों में से एक ने अपने साथी से कहा तुम इन मुहम्मद सल्ल0) के लिए मिसाल बयान करो। उसने (आप सल्ल0 से मुखातब होकर ) कहा, अपने कानों की पूरी तवज्जोह से सुनो और अपने दिल की तवज्जोह से गौर करो, आपकी मिसाल और आपकी उम्मत की मिसाल उस बादशाह की मिसाल जैसी है जिसने एक महल बनाया हो, उसमे कई कमरे बनाए हों, फिर दस्तरख्वान बिछाया हो, फिर एक क़ासिद ( दूत) को रवाना किया हो कि वह लोगों को खाने की तरफ़ बुलाए । पस उनमें से किया हो। कुछ लोगों ने कुबूल किया हो और कुछ लोगों ने इनकार


पस बादशाह तो अल्लाह है और महल इस्लाम है, और घर जन्नत है। और ऐ मुहम्मद आप रसूल (कासिद) हैं। पस जिसने आपकी दावत पर लब्बैक कही वह इस्लाम में दाखिल हो गया


जो इस्लाम में दाखिल हो गया वह जन्नत में दाखिल हो गया, और जो जन्नत में दाखिल हो गया उसने उससे खाया जो कुछ उसमें मौजूद है। (तिर्मिज़ी शरीफ़ मिसाल के बयान में हदीस 2860)


हदीसः हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जनाब रसूलुल्लाह सल्ल0 ने इरशाद फ़रमायाः

Zannat ka rasta

तर्जुमाः जन्नत और दोज़ख़ ने आपस में झगड़ा किया तो दोज़ख ने कहाः मुझे ज़ालिम जाबिर और घमण्डी लोगों के साथ तरजीह दी गयी है (कि अल्लाह उन लोगों को मेरे अन्दर दाखिल फ़रमाएँगे) और जन्नत ने कहां की मैं भी कम नहीं हूँ मेरे अन्दर भी कमज़ोर और दुनिया एतिबार से घटिया (समझे जाने वाले) लोग दाख़िल होंगे। अल्लाह तआला ने फैसला करते हुए) दोज़ख़ से फ़रमायाः तू मेरा अज़ाब है। मैं तेरे साथ जिसे चाहूँगा अज़ाब दूँगा। और जन्नत से फ़रमाया तू मेरी रहमत है। मैं तेरे साथ जिसे चाहूँगा रहमत से नवाजूँगा और हाँ तुम में से हर एक के लिए पूरा पूरा भराव है। पस दोज़ख़ की ( क़यामत के दिन) यह हालत होगी कि वह सैर होने (यानी भरने) का नाम न लेगी यहाँ तक कि अल्लाह तआला उसमें अपना पाँव मुबारक रखेंगे और फुरमाएँगे बस! बस ! तो वह उस वक्त जाकर सैर होगी और उसका एक हिस्सा दूसरे में सिमट जाएगा। मगर अल्लाह तआला किसी पर जुल्म नहीं करेंगे (कि दोज़ख़ को भरने के लिए नाहक तौर पर लोगों को दोज़ख़ में डालें।) और जन्नत की यह हालत होगी कि उस (को रिझाने) के लिए एक नई मख़्लूक पैदा करेंगे। (बुदूरे साफ़िरह पेज 399 )



Zannat ka rasta

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Omar bin khatab hazrat Umar raziallahu anha hindi story

 Omar bin khatab hazrat Umar raziallahu anha hindi story

उमर फारुक रजियल्लाहु अन्हु के ज़माने में इस्लामी हुदूद 23 लाख मुरब्बा मिल तक फैल गइ |हजरत उमर एक इंसाफ पसंद बादशाह थे. हज़रत उमर जो तख्त ए हुकुमत पे बैठते थे वो तख़्त कोइ सोने चाँदी का नही था बल्के मस्जिद ए नबवी की चटाई थी|और वही बैठ कर लोगों की बाते सुनते उनकी परेशानी सुनते और जब रात होती तो भेस बदलकर मदीने की गलीयों मे घूमते और लोगो का हाल मालूम करते थे |

 
Omar bin khatab hazrat Umar raziallahu anha hindi story

एक रात जब हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु अपने गुलाम अस्लम के साथ हर्रा वाकिम  (एक जगह एक जगह है)उसकी तरफ निकले और जब वो "सिरार" पहूँचे तो एक जगह आग जलती हूइ देखी जब  नजदीक पहँचे तो देखा की एक औरत आग पर हंडी चढाये हुए थी और उसके बच्चे रो रहे थे | हज़रत उमर ने सलाम किया और पूछा ये हंडी क्यु चढा रखी है और बच्चे क्यु रो रहै है......?  इन्हें खाना क्यु नहीं देती?  

तब वह औरत बाेली ये बच्चे भुख़ से रो रहे है 3 दिन से हमारे यहा खाने को कुछ नही है | रोज़ाना बच्चे रोते है और मैं हंडीया के अंदर पत्थर डाल के नीचे से आग दे देती हूं फिर बच्चे इंतजार कर कर के साे जाते हैं! कबख़्त सो भी नही रहे ! और वो पत्थर पकेगे भी क्या.
 और मैं हजरत उमर के वजह से  रो रही हूं "
 हस्र के मैदान में अल्लाह हमारे और उमर के बीच फैसला करे गा!
ये बात सुनकर हज़रत उमर का कलेजा दहलने लगा | और फरमाया अल्लाह रहम करे !              उमर को आप के बारे में कैसे पता होगा ? 
 
ओ औरत बोली क्यु नही होगा?
वो हमारा हुक्मरान है बादशाह है! वो हमसे गाफिल और बेख़बर कैसे  है ?  ये सुनकर हज़रत उमर और अस्लम फौरन पलटे  | बैतुल माल (अनाज का गौदाम)  में आये| आटे की एक बोरी ली,  घी, खजूर,  दिरहाम, और कपडे रखे , यहा तक की बोरी पूरी तरह से भर गयी | और  अपने गुलाम अस्लम से फरमाया " ये बोरी मेरी पीठ़ पर लाद दो" अस्लम बोले ये काम तो मेरा है ! मेरे आका लोओ ये बोरी मैं ऊठाउगा ! 

 


 हज़रत उमर की आँखों में आंसू आ गया और फरमाया !
 
" अस्लम ! कयामत के दिन मेरा बोझ उठा लोगे" ?

ये उमर का बोझ है उमर को ही उठा ने दो
ये सुनकर अस्लम ने बाेरी उनके पीठ़ पर डाल दी और वो
औरत के घर जाते है और दस्तक देते है | वो जब देखती है तो उसकी जान में जान आ जाती है | हजरत उमर ने कहा जल्दी जल्दी आटा गंदो और हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु सब्जी काटने लगे जाते है | और चूल्हे पे सब्जी पकाने रख दी जाती है  और जब जब आग बुझने लगती है हज़रत उमर झुक झुके चूल्हे के अंदर फूके मारते है | और जब खाना तैयार हो जाता है और सब खा लेते है तो हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु बच्चो को खुश करने के लिए उनके साथ खेलते है और बच्चों को हंसाते है जब बच्चे मुस्कराने लगे तो!   
 औरत बोली अल्लाह तआला आप को जजा ए खैर दे खिलाफत के हकदार आप हो उमर नही  ! 

 Omar bin khatab hazrat Umar raziallahu anha hindi story


हज़रत उमर ने कहा "आप उमर को माफ कर दे"  उसने कहा आप इतनी हमदर्दी क्यु करते है ?
कहा मेरी बहन उमर को माफ कर दे ! औरत बोली ना ना!  उमर की मेरे सामने बात ना करो
कयामत का दिन होगा उमर का गिरेबान होगा और मेरा हाथ होगा"
ये सुनकर हजरत उमर बिलख बिलख कर रोने लगे और कहा वो बदनसीब उमर तेरे सामने है   !

 आज ही कहले जो कहना है  कयामत के दिन मुझे माफ रखना ! हजरत उमर रजियल्लाहु कहते है अगर दजला के किनारे अगर एक बकरी का बच्चा भी प्सासा मर गया तो उसका हिसाब भी उमर से लिया जायेगा |
 
 यह सुनकर वह औरत हजरत उमर को माफ कर देती है

अल्लाहु अकबर  | ये है इस्लाम और इसे कहते है हुक्मरान 
(कन्जुल उम्माल) Umar तेरी खिलाफत का जमाना याद आता हे

Omar bin khatab hazrat Umar raziallahu anha hindi story




hazrat Sulaiman hindi story

               हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम

Hazrat Sulaiman hindi story
कहते हैं कि हज़रत सुलैमान हज़रत दाऊद की उस बीवी से पैदा हुए जो पहले ओरिया की बीवी या मंगेतर थी। हज़रत सुलैमान की पेशानी से बुजुर्गी और बड़ाई की निशानियां बचपन ही से ज़ाहिर थीं। कम उम्री में ही अजीब व ग़रीब बातें उनसे ज़ाहिर होती थीं। हैरत की बात यह है कि हज़रत दाऊद उनके बचपन ही में बड़े-बड़े कामों में उनसे सलाह-मश्विरा करते थे। मिसाल के तौर पर उस क़िस्से को लीजिए जो क़ुरआन में भी बयान हुआ है। । दो आदमी थे - यूहन्ना और ऐलिया। यूहन्ना की बकरियों ने ऐलिया का खेत खा लिया। मुक़द्दमा हज़रत दाऊद के सामने पेश हुआ। खेत के नुक़्सान की कीमत का अन्दाज़ा किया गया। वही क़ीमत तमाम बकरियों की समझी गई। हज़रत दाऊद ने यूहन्न की तमाम बकरियां ऐलिया को दिला दीं।

यूहन्ना अदालत से रोता हुआ बाहर निकला। हज़रत सुलैमान को जब मालूम हुआ कि हज़रत दाऊद ने इस तरह का फ़ैसला किया है तो उन्होंने फ़रमाया कि जनाब ने बहुत अच्छा इन्साफ़ किया है लेकिन अगर मुझको इस मुक़द्दमें में फ़ैसला करने का हुक्म दें तो मैं ऐसा फ़ैसला करता कि दोनों फ़रीक़ राज़ी हो जाते।

हज़रत दाऊद को जब यह ख़बर पहुँची तो अपने बेटे को बुलाकर पूछा, तुम इस मामले में क्या फैसला करते ?'

हज़रत सुलेमान ने कहा, “आपने जो कुछ फ़ैसला किया है वह इन्साफ़ के बिल्कुल मुताबिक़ है, लेकिन अगर खेतवाले को बकरियां सौंप कर कहा जाता कि तू इन बकरियों के दूध और बाल वग़ैरह से फ़ायदा उठा और बकरी वाले से कहा जाता कि तू इस खेत को पानी दे और देखभाल कर, यहां तक
कि वे पहली हालत को पहुँचे तो मुद्दई को खेत देकर अपनी बकरियां ले ले तो ज्यादा मुनासिब था।

हज़रत दाऊद को यह फ़ैसला पसन्द आया और पहले फ़ैसले को रोक कर हज़रत सुलैमान की तज्वीज़ के मुताबिक हुक्म सादिर किया। दोनों फरीक़ ख़ुश होकर दुआयें देते हुए चले गये।

जब हज़रत सुलैमन हज़रत दाऊद के बाद बादशाह हुए तो अल्लाह तआला ने इन्सान और जिन्न, जानवर और परिन्द और हवा तक पर उनको काबू दे दिया ।

जिन्न उनके लिए गोता लगाते और इसके अलावा और बहुत से काम करते थे। ख़ुदा ने उन्हें चिड़ियों की बोली का इल्म भी दिया था।

बैतुल-मकदस की तामीर

हज़रत दाऊद ने बैतुल मक़िदस की बुनियाद डाली थी, लेकिन उसकी तामीर हज़रत सुलैमान के ज़रिये मुकम्मल हुई। हज़रत सुलैमान ने अपनी बादशाहत के ज़माने में बड़े-बड़े कारीगरों और फ़नकारों को जमा किया और एक शहर की बुनियाद डाली। देवों को खानों में भेजा कि वे जवाहर, याक़त, फ़ीरोज़ा ज़मुर्रद, चांदी और सोना वग़ैरह निकाल कर लाए। कुछ जिन्नों को भेजा गया कि दरिया में ग़ोता लगाकर मोती निकालें। एक फ़ौज पत्थर लाने के लिए मुक़र्रर की गई। जब सामान इकट्ठा हो गया, तब संगतराशों ने सफ़ेद, हरे और पीले पत्थर मुनासिब तरतीब से लगाकर मस्जिद की चारदीवारी तैयार की और उसके खम्भे निहायत साफ़ पत्थरों से खड़े किए गये। छत को मोती और आबदार जवाहर से सजाया गया, जिसकी वजह से रात में भी इबादतखाने के अन्दर रौशनी रहती थी। शहर की बुनियाद में सफ़ेद पत्थर इस्तेमाल किए गए और बारह बुर्ज बनाए गये। जब इबादतखाना तैयार हो गया तब हज़रत सुलैमान ने बनी इसराईल के अच्छे और बुजुर्ग लोगों को हुक्म दिया, "यह घर ख़ास अल्लाह के लिये बना है। यह हमेशा आलिमों और वलियों से आबाद रहे। एक पल के लिये भी यह ख़ील और सुनसान न
हो।" एक मुद्दत तक शहर और इबादतगाह की रौनक़ कायम रही, लेकिन जब बख़्त नम्र ने मुल्क शाम पर हमला किया तो उसने इस शहर को वीरान कर डाला। मोती और जवाहर मस्जिद से उखाड़ कर अपने यहां ले गया।

हज़रत सुलैमान बड़ी शान के साथ अदालत करते थे। आप दिन ढलने तक अदालत में रहते और इसके बाद दीवाने मुअल्ला में तशरीफ़ ले जाते। आपके बावरचीख़ाने में सात सौ गाड़ी आटे की रोटी और उसी के मुताबिक रंग-बिरंग के सालन पकते और लोगों को खाना खिलाया जाता और खुद हज़रत सुलैमान का हाल यह था कि ज़म्बील (थैला) बनाकर बेचते और जौ की रौटी ग़रीबों के साथ बैठकर खाते।

सबा की रानी बिल्कीस

हज़रत सुलैमान ने हरेक परिन्दे को एक-एक मुहिम के लिये मुक़र्रर किया था। हुदहुद के ज़िम्मे पानी का पता लगाना था। एक दिन हज़रत सुलैमान अपने तख़्त से नमाज़ के लिए उतरे और लश्कर को हुक्म दिया कि खाना पकाया जाये। हुदहुद ने सोचा कि जब तक हज़रत सुलैमान नमाज़ में हैं तब तक मैं उड़कर इधर-उधर का हाल मालूम करूं।

वह उड़कर एक शहर में पहुँचा जो नहरों और बागों से आबाद था। इमारतें उसकी बहुत खूबसूरत थीं।

हुदहुद वहाँ का सब हाल मालूम करके वापस हुआ।

इधर हज़रत सुलैमान ने जब हुदहुद को गायब पाया तो पूछा कि हुदहुद कहां है कि फ़ौज प्यासी है और हुदहुद मौजूद नहीं है जो पानी का पता लगाये।

हज़रत सुलैमान को गुस्सा आया और उन्होंने फ़रमाया कि अगर हुदहुद ने कोई ठीक वजह बयान न की तो मैं उसको क़ैद करूंगा या उसे जिब्ह कर डालूंगा। उक़ाब को हुदहुद की तलाश में भेजा। उसने हुदहुद को सबा की. तरफ़ से आते हुये देखा। फिर उसको सुलैमान की खिदमत में हाज़िर किया।
हज़रत सुलैमान ने पूछा, "तू कहां गया था ?"

हुदहुद ने कहा, “मैं ऐसी ख़बर लाया हूँ जो आपको नहीं मालूम। मैं सबा से आपके लिये एक सच्ची ख़बर लेकर आया हूँ। मैंने वहाँ एक औरत को लोगों पर हुकूमत करते देखा। उसे सब कुछ हासिल है। उसके पास एक बड़ा तख़्त है। मैंने उसे और उसकी क़ौमवालों को देखा कि वे अल्लाह को छोड़कर सूरज को सज्दा करते हैं। शैतान ने उन्हें ग़लत कार्यों में लगा रखा है, यहां तक कि वे इससे बेख़बर हो गये कि अल्लाह के सिवा किसी को सज्दा नहीं करना चाहिए और आसमान ज़मीन की छिपी चीजें वहीं निकालता है और खुली छिपी सारी बातें उसे मालूम हैं।

हज़रत सुलैमान ने कहा, "अभी हम देख लेते हैं कि तूने सच कहा है। या तू झूठ बोल रहा है।"

अपने फिर एक ख़त लिखा

इन्नहु मिन सुलैमान न व इन्हू बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, अल्ला तअलू अलैया व आ तूनी मुस्लिमीन.

"यह सुलैमान की तरफ़ से है और यह है अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहमवाला है, यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और मुस्लिम होकर मेरे पास हाज़िर हो जाओ।

यह ख़त हज़रत सुलैमान ने हुदहुद को दिया और कह कि मरा वह ख़त

ले जा और बिल्क़ीस के आगे डाल दे। देखो वहाँ से क्या जवाब आता है।

हुदहुद ख़त लेकर उड़ा और सबा जा पहुँचा।

बिल्क्रीस अपने महल में आराम कर थे। हुदहुद झरोखे से अन्दा दाखिल हुआ है महल के दरवाज़े बन्द हज़रत सुलैमान का बिल्क्रीस के आगे डाल दिया। जब बिल्कीस नींद से बेदार हुई और ख़त देखा ती बड़ी हैरानी कि यह ख़त कौन लाया है। उसने इधर-उधर देखा तो निगाह हुदहुद पर पड़ी, वह समझ गई कि ख़त यही हुदहुद लाया है। जब
ख़त देखा तो उसपर हज़रत सुलैमान की मुहर पड़ी हुई थी। उसने अपने दरबारवालों को ख़त पढ़कर सुनाया और कहा, “इस मामले में मुझे राय दो। मैं तो किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती जब तक कि तुम हाज़िर न हो, उन्होंने कहा, "हम ताक़तवाले हैं और सख़्त लड़नेवाले हैं। अब आप जैसा हुक्म दें, यह आपको इख़ितयार है। "

बिल्कीस ने कहा, "जब बादशाह किसी शहर में दाख़िल होते हैं तो उसे तबाह कर देते हैं और वहाँ के इज़्ज़तवालों को ज़लील करते हैं। मैं उन्हें कुछ तोहफ़ा भेजती हूँ, फिर देखती हूँ कि हरकारा क्या खबर लेकर आता है। सबको यह बात पसन्द आई। फिर बिल्क़ीस ने सैकड़ों गुलाम और लौंडियां, याकूत और सोने-चांदी की ईटें तोहफ़े के तौर पर भिजवाईं और अपने एलची से कहा, "यह सब तोहफ़ा देकर वापस आओ। अगर वह ग़रूर और घमंड की बातें करे तो समझना कि वह बादशाह है, फिर उससे मत डरना, बल्कि दिलेरी से बात करना और अगर वह नर्मी से बात करे और मेहरबानी से पेश आये तो समझना कि वह पैग़म्बर है और फिर अदब से बातचीत करना ।

उधर हज़रत जिब्रील ने हज़रत सुलैमान को इन तमाम बातों की ख़बर दे दी। हज़रत सुलैमान ने जिन्नों को हुक्म दिया कि एक कुशादा मैदान में जिस तरफ़ से बिल्क्रीस का ऐलची आता है सोने-चांदी की ईंटों का फ़र्श बिछाएं, जिन्न और इंसान अलग-अलग सफ़ बांधकर खड़े हों और ज़मीन के और दरियाई जानवर फ़र्श के किनारे बांधे जाएं।

हज़रत सुलैमान ने अपना तख़्त उस फ़र्श पर बिछाया, फिर हज़ारों कुर्सियां आमने-सामन तरतीब से रखवाईं जिस पर बनी इसराईल के बड़े-बड़े लोग और आलिम अपने-अपने दरजों के मुताबिक़ बैठे।

परिन्दों ने अपने परों से साया किया। जब बिल्क़ीस का दूत पहुँचा तो हैबत के मारे उसका क़दम आगे न उठता था। जब वह हज़रत सुलैमान के पास पहुँचा तो आप बहुत खुश अफ़्लाक़ी और नरमी से पेश आए। उसने बड़े ही अदब से बिल्क्रीस का तोहफ़ा आपकी खिदमत में पेश करना चाहा।
हज़रत सुलैमान ने फ़रमाया, “तुम अपने माल से मुझे क्या मदद पहुँचाओगे। जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं बेहतर है जो तुम्हें मिला है। लौट जाओ, हम ऐसे लश्कर लेकर हमला करेंगे जिनका मुक़ाबला उनसे न हो सकेगा और हम उन्हें ज़लील करके निकाल देंगे।'

दूत सबा वापस गया और जाकर कहा, “सुलैमान सिर्फ़ बादशाह नहीं है, बल्कि वह तो ख़ुदा का पैग़म्बर है। हम उसके मुक़ाबले की ताक़त नहीं रखते।"

बिल्क़ीस ने हज़रत सुलैमान के पास चलने का इरादा किया और अपने तख़्त को महल में रखकर उसके सब दरवाज़े बन्द कर दिए और उनमें मज़बूत ताले लगा दिए गए। पहरेदार हिफ़ाज़त के लिए मुक़र्रर किए गए। फिर वह बड़ी शान-शौकत के साथ सफ़र के लिए रवाना हुई।

कई मंज़िलें तय करने के बाद वह हज़रत सुलैमान के लश्कर के क़रीब पहुँची।

हज़रत सुलैमान को जब रानी के आने की खबर मिली तो आपने मज्लिस वालों से फ़रमाया कि तुम में कौन है जो बिल्क़ीस के तख़्त को उसके यहां पहुँचने से पहले ला दे। जिन्नों में से एक बड़े ही ताक़तवर शख़्स ने कहा कि "मैं यहां से आपके उठने से पहले तख़्त ले आऊंगा। मैं ताक़तवर हूँ और अमानतदार भी हूँ।”

हज़रत सुलैमान सुबह से दिन ढलने तक मज्लिस में बैठे थे। आपने कि “इससे भी पहले तख़्त आ जाए।" फ़रमा

एक शख़्स ने जिसे किताब का इल्म था, कहने लगा, “मैं आपकी पलक झपकने से पहले ही तख़्त ले आऊंगा।"

फिर क्या देखते हैं कि बिल्कीस का तख़्त सामने रखा हुआ है। आपने फ़रमाया, "यह मेरे रब का फ़ज़्ल है। वह मुझे आज़माता है कि मैं उसका शुक्रगुज़ार होता हूँ या नाशुक्रा। जो शुक्र अदा करता है अपने ही लिए करता
है और जिस किसी ने नाशुक्री की तो मेरा रब बेपरवाह और करीम है।" हजरत सुलैमान ने हुक्म दिया कि सब्ज़ जवाहरात की जगह सुर्ख और सुर्ख की जगह सब्ज़ जवाहर तख़्त में जड़ दिए जाएं।

हज़रत सुलैमान ने एक ऐसी मज्लिस सजाई जो अपनी मिसाल आप थी। बिल्कीस हज़रत सुलैमान के पास पहुँची। उसने अपने तख़्त की तरफ़ देखा। पूछा, "क्या आपका तख़्त ऐसा ही है?" उसने कहा कि यह तो जैसे वही है। और हमको तो इससे पहले ही इल्म हासिल हो गया था और हम मुस्लिम हो गए।

हज़रत सुलैमान बिल्क़ीस की समझदारी से बहुत खुश हुए। फिर बिल्क़ीस से कहा गया कि महल में चलिए। महल कुछ इस तरह तैयार कराया गया था कि बीच में साफ़-सुथरे पानी से भरा हुआ चमकता हुआ हौज़ था, उसमें रंग-बिरंगी मछलियां थीं। तमाम आंगन के मुंह पर सफ़ेद चमचमाता शीशा जमा हुआ था। इस तरह कोई अनजाना देखता तो उसे पानी का समझता। चुनांचे जब बिल्क़ीस महल में जाने लगी तो उसने भी उसे देखकर पानी का हौज़ समझा और उसमें उतरने के लिए अपनी पिंडलियां खोल दी।

हज़रत सुलैमान ने कहा, “यह तो महल है जिसमें शीशे जड़े हुए हैं। "

बिल्क़ीस ने कहा, “ऐ मेरे रब, मैंने अपने आप पर बड़ा जुल्म किया, अब मैं सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के हवाले करती हूँ जो सारे जहां का रब है।"

कहते हैं कि हज़रत सुलैमान ने बिल्कीस के साथ निकाह कर लिया।

हज़रत सुलैमान की वफ़ात

कहते हैं कि हज़रत सुलैमान जब ख़ुदा की बंदगी में लगे होते तो हर दिन एक दरख़्त या पौधा अपने गुण बयान करता कि मैं फ़लां-फ़लां रोग की दवा हूँ और मुझमें यह खासियत है।
हज़रत सुलैमान उनको लिखवाते थे।

एक दिन एक दरख़्त सामने आया। उसने सलाम करके कहा कि मेरी ख़ासियत तेरे मुल्क और सल्तनत की खराबी है। इसके बाद अल्लाह तआला ने वह्य नाज़िल की, “ऐ सुलैमान, तुम्हारे इन्तिकाल का वक़्त क़रीब आ गया है, अब आख़िरत के सफ़र की तैयारी करो।"

हज़रत सुलैमान ने वसीयत की और जो कुछ लिखाना था लिखा चुके, तब ख़ुदा की जनाब में दुआ की कि मेरी मौत की ख़बर जिन्नों और शैतानों को एक साल तक न होने पाए ताकि जो काम मैंने उन्हें सौपे हैं वे पूरे हो जाएँ।

इसके बाद गुस्ल करके पाकीज़ा लिबास पहना और इबादतखाने में तशरीफ़ ले गए और लाठी पर जिस तरह थकावट के वक़्त टेक लगाते थे टेक लगाया। उसी वक़्त आपका वक़्त पूरा हो गया और आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली गई। हज़रत सुलैमान जब इबादतख़ानों में होते और इबादत में लगे होते तो कारिन्दे उस मुद्दत में मुल्क के कार्यों को संभालते थे और शैतान इबादत के वक़्त सामने न देख सकते थे। इस तरह देवों और जिन्नों की अगर आप पर निगाह पड़ती भी तो वे समझते कि आप इबादत में खड़े हैं, इसलिए वे मेहनत से काम बराबर करते रहे।

जब एक साल पूरा हुआ और दीमक ने लाठी की जड़ खा ली तो हज़रत सुलैमान गिर पड़े। तब जिन्नों और देवों को आपके इन्तिक़ाल की ख़बर हो सकी। इस तरह यह बात खुल गयी कि ग़ैब की खबर जिन्नों को मालूम नहीं होती। अगर वे ग़ैब जानते तो साल भर मेहनत-मशक़्क़त क्यों करते।


hazrat Yaqub aor hazrat Yusuf alaihi salam

हज़रत याकुब और हज़रत यूसुफ़

    हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम का क़िस्सा अजीब व गरीब है जिसके सुनने से दिलों में नेक कार्यों की मुहब्बत और परहेज़गारी और पाकबाज़ी से लज़्ज़त हासिल होती है।

अल्लाह तआला ने इसे अहसनुल क़सस (सबसे अच्छा क़िस्सा)

फ़रमाया है।

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के बाप, दादा, परदादा सभी पैग़म्बर थे जिनकी शान में रसूलल्लाह ने फ़रमाया है :

'करीम इब्ने करीम, इब्ने करीम !

(करीम, करीम का बेटा, करीम का बेटा)

हज़रत यूसुफ़ ऐसे साहबज़ादे थे जिन्हें ख़ुदा ने रूहानी और अख़लाक़ी हुस्न के साथ ज़ाहिरी हुस्न भी ऐसा बख़्शा था कि निगाहें बेइख़्तियार आपक

तरफ खिंचती थीं।

एक रिवायत में आता है कि अल्लाह ने के दस हिस्से किए। नौ हिस्से हज़रत यूसुफ को मिले और एक हिस्से में से तमाम दुनिया को दिया गया।

एक बार हज़रत यूसुफ़ सोकर उठे तो चेहरा सूरज की तरह चमक रहा ने था और दिल सीमाब (पारा) की तरह तड़पता था। हज़रत याकूब पूछा, "बेटा तेरा क्या हाल है?"

फ़रमाया, "अब्बा मैंने एक अजीब ख़्वाब देखा है कि मैं एक पहाड़ पर हूँ जिसके गिर्द पानी रखा है, सब्ज़ा उगा हुआ है, फूल खिले हुए हैं। गोया हसीन बाग़ है। अचानक ग्यारह सितारे और चांद और सूरज आसमान से उतरे और मुझको सज्दा किया।

हज़रत याकूब ने समझा कि पहाड़ असल में बेटे की बुलंद क़िस्मत है। और बहता चश्मा और सब्ज़ा और बाग़ खुशबस्ती की निशानी है और सूरज चांद और ग्यारह सितारे इसके मां-बाप और ग्यारह भाई हैं जो इसके आगे झुकेंगे और इसके फ़रमांबरदार होंगे। हज़रत याकूब को अंदेशा हुआ कि कहीं हज़रत यूसुफ़ के भाई उससे हसद न करें, इसलिए फ़रमाया कि अपना ख़्वाब भाइयों से बयान न करना, लेकिन भाइयों को यूसुफ़ का हाल मालूम हो गया। वे हसद की वजह से यूसुफ़ के दुश्मन हो गए और उन्हें नुक्सान पहुँचाने का इरादा कर लिया।

वे रोईल के पास आए जो सबमें समझदार था और कहा कि ख़्वाब बनाकर बाप को सुनाता है और इस तरह बाप का दिल अपनी तरफ़ मायल करता है। रोईल न कहा यूसुफ़ झूठे

"ऐसी मनमोहनी सूरत झूठ बोले यह मुम्किन नहीं क्या अजब कि उसके इक़बाल का सितारा जाहिर हो और ग़ैब के परदे से उसकी खुदाबख़्ती नुमायां हो।"
सब भाई रोईल की बात से और यूसुफ़ के ख़्वाब से फिक्र में पड़ गए और हसद की आग उनके दिल में भड़क उठी। जब वे देखते कि बाप यूसुफ़ पर बहुत ज्यादा मेहरबान है तो भाइयों की बेकरारी और बेचैनी और बढ़ जाती।

आखिर में उन्होंने तय कर लिया कि यूसुफ़ को क़त्ल करके इस किस्से को पाक कर देना चाहिए। आपस में राय-मश्विरा करके बाप की खिदमत में पहुँचे और कहा

"ऐ अब्बाजान! यह क्या हो गया है कि आप यूसुफ़ को हमारे साथ र और शिकार के लिए नहीं भेजते। इजाजत दीजिए कि एक रोज़ वह हमारे साथ जंगल में शिकार को जाए और अपना दिल बहलाए।"

ने

हज़रत याकूब ने फ़रमाया

"इस बेटे से मेरा दिली लगाव है। इसकी जुदाई मुझे पसंद नहीं कहीं ऐसा न हो कि तुम ग़ाफ़िल हो जाओ और भेड़िया उसे खा जाए।"

बेटों ने कहा, 'यह कैसे मुम्किन है कि हम सबकी मौजूदगी में यूसुफ़ को

कोई नुक्सान या तकलीफ़ पहुँचे।'

बाप हज़रत यूसुफ़ को भेजने पर तैयार न हुए भाई नाउम्मीद हो गए। शैतान ने उनके दिल में डाला कि पहले यूसुफ़ को राजी कर लो तब बाप के पास जाओ।

बहार का मौसम था, भाइयों ने यूसुफ़ को साथ ले जाने पर राज़ी कर लिया और यूसुफ़ को लेकर बाप के पास पहुँचे और इजाज़त चाही।

जब हज़रत याकूब ने देखा कि यूसुफ़ ख़ुद जाना चाहते हैं तो मजबूर होकर जाने की इजाज़त दे दी, और यहूदा से फ़रमाया

"मैं यूसुफ़ को तुम्हें सौंपता हूँ, पूरी निगरानी रखना और उसे किसी तरह

की तकलीफ़ न पहुँचाना।"
हज़रत याकूब ने यूसुफ को छाती से लगाया और फ़रमाया "ऐ प्यारे बेटे, अगर जुदाई का जमाना लम्बा हो जाए तो अपने बाप को मत भूलना, इसलिए कि वह जब तक तुझे न देखेगा हरगिज़ न हंसेगा।"

आज़माइश का दौर

नवादुरुल क़सम में लिखा है कि जब हजरत याकूब यूसुफ़ से चन्द क़दम दूर हुए तो आप पर ग़शी तारी हो गयी हजरत यूसुफ को फिर सीने से लगाया और आह भर कर फ़रमाया, 'मुझे जुदाई की बू आ रही है।'

हजरत यूसुफ़ के भाई हज़रत यूसुफ़ को अपने साथ लेकर चले। जब तक वह हज़रत याकूब की निगाहों के सामने थे तब तक वह हज़रत यूसुफ़ के साथ मुहब्बत और इज्जत से पेश आते रहे। जब बाप की निगाह से दूर हो गए तो हज़रत यूसुफ को सताना शुरू किया। कभी तमाचों से मारते और कभी निहायत जिल्लत से अपने आगे दौड़ाते।

हज़रत यूसुफ़ का गुलाब-सा चेहरा गर्मी से पसीना पसीना हो गया और प्यास की वजह से गला सूख गया, बड़ी आजिज्री और मिन्नत से भाइयों से पानी मांगा लेकिन उन्होंने पानी न दिया, खाना मांगा तो बोले भी नहीं। एक ने कहा, 'सितारे कहां है जो तेरी खिदमत में हाजिर थे? उनसे मदद क्यों नहीं मांगते।'

हजरत याकूब ने एक आफ़ताबे में पानी भर कर हज़रत यूसुफ़ के लिए दिया था। शमऊन ने पानी जमीन पर बहा दिया और कहा कि प्यास से क्या रोता है। अब तो हम तुझ से बदला लेंगे और तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।

हज़रत यूसुफ ने क़त्ल की बात सुनी तो डर गए और खुदा से दुआ की: "ऐ फ़रियादी की फ़रियाद सुनने वाले! मेरी मजबूरी और लाचारी पर रहम कर और मुझे इस मुसीबत से निकाल।" फिर रोईल से कहा, "ऐ मेरे भाई, तू और भाइयों से बढ़कर मुझसे मुहब्बत करता था और मेरे साथ
अभी कुएं में आधी दूर तक ही यूसुफ़ पहुँचे होंगे कि रस्सी काट दी। हज़रत जिब्रील ख़ुदा के हुक्म से कुएं में पहुँचे और यह खुशखबरी दी

"ग़म न कर, तेरा ग़म खुशी में बदल जाएगा। यह बला की काली रात ढल जाएगी। ख़ुदा तुझे तख़्ते-सल्तनत पर बिठाएगा। और तेरे भाई तेरे सामने मजबूरी की हालत में खड़े होंगे और तू उनकी ख़ताएं उन्हें याद दिलाएगा और ये अपनी ख़ताओं का इक़रार करेंगे।"

जब यूसुफ़ के भाई हज़रत यूसुफ़ को कुएं में डाल कर र तो एक बकरी के बच्चे को ज़िबूह किया और हज़रत यूसुफ़ के कुर्ते को उसके खून में डुबो लिया। शाम को रोते-पीटते घर पहुँचे। उधर हज़रत याक़ूब को बेटे का सख़्त इन्तिज़ार था।

बेर्टो ने यह ख़बर सुनायी कि हम तो यूसुफ़ को सामान के पास छोड़ कर आगे गए थे, उसको भेड़िया खा गया।

हज़रत याकूब यह सुनकर रंज के मारे बेहोश हो गश होश में आने पर

रोईल ने आगे आकर कहा

'ऐ मेरे मुहतरम बाप, ख़ुदा तुझे यूसुफ़ की तरफ़ से सब्रे जमील दे।'

हज़रत याकूब ने बेटे का कुर्ता तलब किया और उसे देखकर फ़रमाया 'अजीब- ग़रीब भेड़िया था। बेटे को तो खा गया और उसके लिबास को चीरा तक नहीं।' और फ़रमाया

'फ़सब्रुन जमील वल्लाहुल मुस्तआनु अलामा तसिफ़ून'. अब सब्रे-जमील है और जो कुछ तुम कह रहे हो उस पर ख़ुदा ही

मददगार है।

उधर इत्तफ़ाक़ से सौदागरों का एक क़ाफ़िला मदयन से मिस्र को जा रहा था जो रास्ता भूल कर जंगल में भटक गया था। कुएं पर पहुँचे जिसमें हज़रत
यूसुफ़ करो। डाले गए थे तो क़ाफ़िले के सरदार ने कहा कि आज यहीं क़ियाम सुबह सरदार ने अपने दो गुलामों को कुएं पर पानी लाने के लिए भेजा।

जब डोल कुएं में पहुँचा तो हज़रत यूसुफ़ ने समझा कि मेरे भाई मुझको कुएं

से निकालना चाहते हैं। कुएं में उन्हें तीन दिन-रात गुज़र चुके थे।

हज़रत जिब्रील नाज़िल हुए और कहा :

'ऐ यूसुफ़, इस डोल में बैठ जा।' हज़रत यूसुफ़ इस डोल में बैठ गए।

जब गुलाम ने डोल खींचा और डोल में हज़रत यूसुफ़ को देखा तो वह बेइख़्तियार खुशी से पुकार उठा

'या बुशरा हाज़ा गुलाम'. (अहा! यह तो लड़का है।)

हज़रत यूसुफ़ के भाइयों ने एक शख्स को इस काम के लिए मुक़र्रर किया था कि अगर कोई यूसुफ़ को निकाले तो हमें ख़बर करना। जब जासूस ने भाइयों को इसकी ख़बर की तो वे फ़ौरन क़ाफ़िले वालों से मिले और कहा "कुछ रोज़ से यह हमारा गुलाम भागा हुआ था। हम ख़ुद इसकी तलाश में हैं।'

सौदागरों ने कहा, 'वाह वाह, यह लड़का तो शराफ़त का पुतला मालूम होता है। यह कैसे मुम्किन है कि हम इसे भागा हुआ गुलाम समझें।'

भाइयों ने कहा, 'यह गुलाम है। पैग़म्बरी खानदान में परवरिश पाई है, लेकिन चन्द रोज़ से बेवफ़ाई इख़्तियार करके भाग निकला है।'

भाइयों ने सौदागरों से कहा :

"इस गुलाम को हम इस ऐब की वजह से बेचना चाहते हैं। अगर खरीदना चाहो तो ख़रीद लो, वरना हमारे हवाले कर दो।'

सौदागरों ने हज़रत यूसुफ़ के चुप रहने से यह समझा कि यह वाक़ई गुलाम है।
हज़रत यूसुफ़ से पूछा तो उन्होंने फ़रमाया
 मैंगुलाम हूँ और गुलाम का बेटा।"

सौदागरों ने कुछ थोड़ा दिरहम देकर हज़रत यूसुफ़ को भाइयों से खरीदा

लिया। फिर सौदागरों ने उनको ऊंट पर बिठा कर मिस्र को रास्ता लिया। जब मिस्र के नज़दीक पहुँचे और एक चश्मे पर उतरे तो हज़रत यूसुफ़ ने नहाया

और उन्हें क़ाफ़िले वालों ने नया कपड़ा पहनाया तो हज़रत यूसुफ़ की

खूबसूरती को देखकर वे हैरान रह गये।

हज़रत यूसुफ़ को अल्लाह ने ऐसा हुस्न अता फ़रमाया था कि वह जिस तरफ रुख करते वहाँ मालूम होता कि सूरज निकल आया है।

क़ाफ़िला मिस्र पहुँचा भी न था कि हज़रत यूसुफ़ खूबसूरती की धूम मच गई। के हुस्न और

शहर के लोग देखने निकले।

मिस्र के बादशाह ने भी वज़ीर को, जिसे अज़ीज़े-मिस्र कहते थे, रवाना किया। वज़ीर वहाँ पहुँचा और हज़रत यूसुफ़ को क़ाफ़िले से खरीद लिया।

अज़ीज़े मिस्र हज़रत यूसुफ़ को घर ले गया और अपनी बीवी, जिसका नाम जुलैखा बताया जाता है, कहा "इसको निहायत इज़्ज़त और आराम से रखो। हम इसे अपना बेटा

बनायेंगे।'

नौजवान यूसुफ़

हज़रत यूसुफ़ जवानी को पहुँचे तो अल्लाह तआला ने उनको इल्म, हिकमत, सब्र, तहम्मुल और पाकबाज़ी वग़ैरह हरेक खूबी अता की। जुलैखा हज़रत यूसुफ़ के हुस्न व जमाल पर फ़िदा थी। हज़रत यूसुफ़
खींचा। क़मीज़ पीछे से फट गई और हज़रत यूसुफ़ दरवाज़े से बाहर निकल

गए। पीछे-पीछे जुलैखा भी बाहर आई। बाहर निकलते ही देखा कि अज़ीज़े मिस्र सामने खड़ा है। हज़रत यूसुफ़ तो खामोश रहे, लेकिन जुलैखा ने अपनी ख़िफ़्फ़त मिटाने

के लिए कहा

'उस शख़्स की क्या सज़ा है जो तेरे घर से बुराई का इरादा करे?'

'ऐसे शख़्स को क्या सज़ा मिलनी चाहिए ?'

हज़रत यूसुफ़ कहा, "मैं बेगुनाह हूँ। इसी ने मुझ पर डोरे डालने ने चाहे। इस मौके पर ख़ुदा का खास करम हुआ।" एक बच्चे ने हज़रत यूसुफ़ की सच्चाई और पाकबाज़ी की गवाही दी। उस बच्चे ने कहा

"अगर क़मीज़ पीछे से फटी है तो जुलैखा झूठी और यूसुफ़ सच्चे हैं और अगर क़मीज़ सामने से फटी है तो जुलैखा सच्ची और यूसुफ़ झूठे हैं।" देखा गया तो क़मीज़ पीछे से फटी थी। इस तरह हज़रत यूसुफ़ की

परहेज़गारी और जुलैखा का कुसूरं ज़ाहिर हुआ। अज़ीज़ मिस्र ने हज़रत

से

यूसुफ़ से कहा कि

'वह दरगुज़र से काम ले।'

उसने पसंद न किया कि लोगों में यह वाक़िआ मशहूर हो । अज़ीज़े मिस्र ने जुलैखा से कहा, 'तू अपने गुनाहों की माफ़ी मांग।' कोशिश के बावजूद बात छिप न सकी। सही है, इश्क़ और मुश्क नहीं रह सकते। छिपे

मिस्र की औरतों जुलैख़ा को ताने देने लगीं और कहने लगीं

"उसे क्या हो गया है जो अपने गुलाम से इश्क़ करती है और कि उसे खातिर में भी नहीं लाता।' गुलाम है
जब जुलैख़ा को यह ख़बर हुई तो उसने एक महफ़िल सजाई और शहर की औरतों और ख़ासतौर पर हुक्काम की बेटियों को दावत दी। महफ़िल में सब औरतें शरीक हुई। इस मौके पर जुलैखा ने किसी बहाने

से हज़रत यूसुफ़ को बुलाया। जब औरतों की निगाह हज़रत यूसुफ़ पर पड़ी

तो हैरान और शशदर रह गयीं, और उनके मुंह से निकला

माहाज़ा बशर. इन्न हाज़ा इल्लाह मलकुन करीम. 'अरे यह तो इंसान नहीं, यह तो फ़रिश्ता है भला।'

जुलैख़ा ने कहा, 'यह है इसकी मुहब्बत जिसका तुम मुझे ताना दिया करती हो।'

जुलैखा ने कहा, 'हमने इस पर डोरे डाले थे। यह अगर मेरी बात न मानेगा तो लाज़मन क़ैद में पड़ेगा।'

सारी औरतें अपने घरों को वापस हो गयीं। मगर औरतें जो बड़ी चर्ब ज़बान थीं रूकी रहीं। उनका इरादा था कि यूसुफ़ को राह पर लाकर रहेंगी। उन्हें ज़बानी और मीठी बातों पर बड़ा भरोसा था। वे इस बात को नहीं जानती थीं कि यूसुफ़ वह पाकबाज़ शहबाज़ हैं जो हवा और हवस के जाल में नहीं फंस सकता।

एक ने जाकर यूसुफ़ से कहा, 'तू जुलैखा की बात क्यों नहीं मनता । तू अगर आफ़ताब है तो वह किसी चांद से कम नहीं। तेरी भलाई इसी में है कि जुलैखा को नाउम्मीद न कर।'

हज़रत यूसुफ़ ने कुछ ऐसी नसीहत फरमाई कि वह औरत हैरान और खामोश होकर वापस आ गई। इसके बाद दूसरी औरत ने जाकर हज़रत से यूसुफ़ कहा

'अगर तूने जुलैखा की आरज़ू पूरी न की और अपनी हठ पर क़ायम रहा तो जल्द ही क़ैदखाने में डाल दिया जाएगा।'

हज़रत यूसुफ़ पर इस डराने-धमकाने का कुछ भी असर न हुआ। ये औरतें भी नाकाम वापस हो गयीं। इन तमाम बातों से हज़रत यूसुफ़ ने तंग आकर जनाबे इलाही में फ़रबाद की, "खुदावंद, जिस चीज़ की तरफ़ ये औरतें मुझे बुलाती हैं उससे अच्छा तो मेरे लिए क़ैदखाना ही होगा। इस गुलिस्तान से बेहतर तन्हाई है।"

वे दोनों औरतें जिन्हें ख़ुद भी हज़रत यूसुफ़ से मुहब्बत हो गई थी जुलैखा के पास गयीं और कहा

'यूसुफ़ को चन्द रोज़ के लिए कैदखाने में भिजवा दो। इस तरह मुम्किन है कि वह इस ऐशो-आराम और साजो-सामान की क़द्र जाने और क़ैदखाने की वहशत में उसे तेरी क़द्र मालूम हो।

जुलैखा को यह बात पसंद आई। उसने अज़ीज़े मिस्र से कहा

'इस इबरानी गुलाम ने मुझे तमाम खल्क में रुस्वा किया। इसे लाज़मन क़ैदखाने में भेज दो ताकि लोग यह जानें कि मेरा दामन इस गुनाह पाक है से और कुसूर अगर है तो गुलाम का।'

अज़ीज़ ने अपने तमाम लोगों से मश्विरा किया। सब ने जुलैखा की राय से इत्तिफ़ाक़ किया। इस तरह हज़रत यूसुफ़ महल से कैदखाने पहुँचे। हज़रत यूसुफ़ को बड़ी खुशी हुई, इसलिए कि अब वह फ़रेब और फ़िले से बिल्कुल महफूज़ थे।

क़ैदी यूसुफ़

हज़रत यूसुफ़ के कैदखाने में आने से दूसरे कैदियों की जान आयी और वे ख़ुशी से नाच उठे। हज़रत यूसुफ़ को एक ख़ास कमरे में कैद रखा गया। हज़रत यूसुफ़ जब इबादत से फ़ारिग़ होते थे तब क़ैदियों से उनका हाल पूछते और उन्हें तसल्ली देते और उन्हें दीन और ईमान की अच्छी अच्छी बातें सुनाते कैदी उनकी सोहबत से बहुत ख़ुश रहते कि क़ैदखाने की मुसीबत तक को भूल जाते। हज़रत यूसुफ़ एक लम्बे अरसे तक कैदख़ाने में में जान

रहे। जब अल्लाह ने उन्हें क़ैद से निकालना चाहा तो ग़ैब से इसके अस्बाब मुहैया हो गये। कहते हैं कि बादशाह रूम ने अपना एक एलची मिस्र भेजा और उसे माल और जवाहरात और थोड़ा सा ज़हर दिया था ताकि वह मिन के बादशाह के किसी मुसाहिब को माल देकर इस बात पर आमादा करे कि बादाशह को किसी बहाने से जहर खिलाकर हलाक कर दे।

वह एलची मिस्र पहुँचा और बादशाह के ख़ास बावरची और शराबदार को अपना दोस्त बनाया और बड़े राज़दाराना अन्दाज़ में उससे अपना मक़सद बयान किया।

शराबदार ने तो साफ़ इंकार कर दिया कि वह किसी कीमत पर भी बादशाह को ज़हर नहीं दे सकता, लेकिन शाही बावरची दौलत के लालच से सही रास्ते से फिर गया और बादशाह को ज़हर देने का वादा कर लिया। अभी बादशाह को वह जहर दे नहीं सका था कि किसी तह इस साज़िश का राज़ खुल गया और बादशाह को यह मालूम हुआ कि शराबदार और शाही M बावरची उसे जहर देने की स्कीम में शरीक थे लेकिन इन दोनों में से किसी खास शख़्स पर गुनाह साबित नहीं होता था, इसलिए बादशाह ने दोनों को क़ैदखाने में भेज दिया।

यह दोनों कैदी जब जेलखाने पहुँचे और वहाँ हज़रत यूसुफ़ की हमनशीनी और सोहबत उन्हें हासिल हुई तो वे बादशाह की मुसाहबत भूल गए और हज़रत यूसुफ़ ही की खिदमत में रहने लगे।

एक रोज़ इन दोनों ने सोचा कि यूसुफ़ हरेक कैदी को खुशखबरी देता है। और हरेक के ख़्वाब की ताबीर करता है और हरेक की उलझनों को दूर करता है। हमें भी आज़माना चाहिए।

फिर वे दोनों हज़रत यूसुफ़ की ख़िदमत में पहुँचे और एक ने कहा, 'मैंने ख़्वाब देखा है कि मैं बादशाह के लिए अंगूर निचोड़ रहा हूँ।'

दूसरे ने कहा :
'मैंने ख़्वाब देखा है कि मेरे सर पर रोटियों का ख़्वान है और चिड़ियां पंजे मारकर खा रही हैं।'

उन दोनों ने कहा, 'ऐ यूसुफ़, हम तुम्हें नेक मंद समझते हैं।

तुम

हमारे

ख़्वाब की ताबीर बताओ।' हज़रत यूसुफ़ ने कहा, “जो खाना तुम्हें मिलता है, उस खाने के आने से पहले मैं तुम्हारे ख़्वाब की ताबीर कर दूंगा। यह उन बातों में से है जो मेरे परवरदिगार ने मुझे सिखाई हैं। मैंने उन लोगों का रास्ता छोड़ दिया है जो अल्लाह को नहीं मानते और आखिरत का इंकार करते हैं। मैंने अपने बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और याकूब का रास्ता इख़्तियार किया है। हमारे लिए यह सही नहीं हो सकता कि किसी चीज़ को ख़ुदा का शरीक ठहरायें। यह ख़ुदा का फ़ज़्ल है हम पर भी और लोगों पर भी। लेकिन अक्सर लोग शुक्रगुज़ार नहीं होते। ऐ क़ैदखाने के मेरे दोनों साथियों, क्या कई आक़ा अच्छे हैं या एक ख़ुदा-ए-ग़ालिब ! तुम उसके सिवा जिनकी भी पूजा करते हो वह तो सिर्फ़ नाम ही नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। अल्लाह ने उनकी कोई सनद नहीं उतारी है। हुक्म तो बस अल्लाह ही का है। उसका हुक्म है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो। यही सही और सीधा दीन है। लेकिन अक्सर लोग जानते नहीं।"

इसके बाद हज़रत यूसुफ़ ने कहा:

“ऐ क़ैदखाने के मेरे साथियों! तुम्हारे ख़्वाब की ताबीर यह है कि तीन दिन के बाद साक़ी और शराबदार क़ैद से छुटकारा पाकर फिर अपने ओहदे पर पहुँच जाएगा और शाही बावरची को तीन दिन के बाद यहां से निकाल कर सूली पर चढ़ा दिया जायेगा और चिड़ियां उसके सर मग्ज़ खायेंगी।'

हज़रत यूसुफ़ ने कहा :

“हो चुका वह जिसके बारे में तुम पूछते थे।"

फिर साक़ी से कहा, "जब तू दोबारा अपने ओहदे पर पहुँचे और

बादशाह की क़ुरबत तुझे हासिल हो तो मुनासिब मौक़ा देखकर बादशाह से कहना कि एक इब्रानी गुलाम क़ैदखाने में पड़ा है और दुनिया के आराम और फ़ायदों से महरूम और मायूस है। "

साक़ी ने हज़रत यूसुफ़ से वादा किया कि वह ज़रूर बादशाह सलामत से इसका ज़िक्र करेगा।

तीन दिन के बाद जो बात पूरी हो चुकी थी वह ज़हूर में आई। एक को सूली पर लटका दिया गया और साक़ी को उसका ओहदा दोबारा अता हुआ। लेकिन वह यह भूल ही गया कि बादशाह से हज़रत यूसुफ़ का ज़िक्र करे।

इस तरह हज़रत यूसुफ़ और भी चंद साल तक क़ैद में रहे।

हज़रत यूसुफ़ अलै. की रिहाई

जब ख़ुदा को मंजूर हुआ कि हज़रत यूसुफ़ को क़ैद से रिहाई मिले तो इसका सामान इस तरह किया गया कि बादशाह मिस्र ने एक अजीब व ग़रीब ख़्वाब देखा। उसने देखा कि सात मोटी-ताज़ी गायें दरिया-ए-नील से बाहर निकर्ली, जिनके पीछे सात गायें और भी निकली लेकिन वह निहायत दुबली-पतली थीं।

बादशाह ने देखा कि दुबली गार्यो ने उन मोटी गार्यो को निगल लिया लेकिन इसके बावजूद उनके पेट पिचके ही रहे। वह दुबली ही रहीं, इसलिए कि उनकी भूख बहुत ज्यादा थी।

इसके अलावा बादशाह ने सात दानेदार बालियां देखीं जो सब्ज़ और हरी-भरी थीं। इसके साथ उसने सात बालियां सूखी हुई और खुश्क देखीं। बादशाह ने देखा कि ख़ुश्क बालियां सब्ज़ बालियों से लिपट गर्यो, यहां तक कि सब्ज़ बालियों की सब्ज़ी बाक़ी न रही। बादशाह जागा तो बहुत फ़िक्रमंद और ग़मगीन हुआ। तमाम जादूगरों और काहिनों को बुलाया और उसने अपने ख़्वाब की ताबीर पूछी। कोई भी ख़्वाब की ताबीर न कर सका। सबने

कहा, “यह तो ख़्वाबे परेशां है। ये तो उड़ते सपने हैं। ऐसे ख़्वाबों की ताबीर हम नहीं करते। " अचानक साक़ी को यूसुफ़ की याद आयी। उसे याद आया कि कभी उसने भी ख़्वाब देखा था जिसकी कितनी सच्ची ताबीर यूसुफ़ ने बयान की

थी। उसे ख़्याल आया कि उसने यूसुफ़ से कुछ वादा भी किया था।

साक़ी ने बादशाह से कहा, 'इन लोगों की बातें बेकार और लायानी हैं। आपके ख़्वाब बेशक सच्चे हैं और यक़ीनन इनकी कोई ताबीर भी है। फिर उसने अपना सारा किस्सा बादशाह से बयान किया कि उसने किस तरह क़ैद खाने में ख़्वाब देखा था जिसकी सही ताबीर यूसुफ़ ने बयान की थी।

बादशाह ने कहा, "यूसुफ़ कौन है, उसके हालात बयान करो ?"

साक़ी ने कहा, "जहांपनाह, मैं ज्यादा तो नहीं जानता मगर इतना समझता हूँ कि वह करीमज़ादा है और इब्राहीम की औलाद में से है। उसे सूरत भी मिली है और सीरत भी अजीज़ ने अपनी औरत के कहने से क़ैद कर रखा है।"

बादशाह ने कहा, "कैदखाने जाओ और पहले ख़्वाब की ताबीर

मालूम करो।'

साक़ी कैदखाने पहुँचा और कहा :

'बादशाह ने एक अज़ीब व गरीब देखा है। तुम उसकी ताबीर बयान करो ताकि बादशाह तुम्हारा रुत्वे व क़ीमत को समझ जाए और तुम्हें क़ैद से रिहाई भी हासिल हो।'

फिर उसने बादशाह का ख़्वाब हज़रत यूसुफ़ से बयान किया। हजरत

यूसुफ़ ने अपनी इल्हामी जुबान से फ़रमाया:

"सात मोटी गार्यो और सात सब्ज़ बालियों से मुराद सात ऐसे बरस हैं मुल्क में बड़ी खुशहाली आएगी, बारिश होगी, खेती को तरक्क़ी जिनमें

होगी, लोग आसूदा और ख़ुशहाल हो जायेंगे और सात दुबली गार्यो और सात सूखी बालियों से मुराद ऐसे सात साल हैं जो उन सात बरसों के बाद आयेंगे और इन सालों में सख़्त कहत पड़ेगा। लोग फ़ाक़ों से दो-चार होंगे। लोगों की खेतियां तबाह होंगी और उनका जीना दूभर हो जाएगा। "फिर आपने मुश्किल दिनों से निबटने की तदबीर भी बतायी। आपने कहा कि लोग सात अच्छे सालों में मेहनत से खेती करें और ज़रूरत के मुताबिक़ किफ़ायत से ख़र्च करें।

अनाज को बालियों समेत क़हत के दिनों के लिए भी बचा रखें। कहत का ज़माना गुज़रने के बाद फिर दिन फिरेंगे, बारिश होगी और लोग आसूदा और खुशहाल हो जायेंगे।

साक़ी ने जब क़ैदखाने से लौटकर बादशाह से उसके ख़्वाब की ताबीर बयान की तो बादशाह को यक़ीन हो गया कि यह उसके ख़्वाब की सच्ची ताबीर है और काहिनों और नजूमियों की बातें सरासर ग़लत हैं।

बादशाह ने हुक्म दिया,

"यूसुफ़ को क़ैद से रिहा किया जाएगा ।”

वह यूसुफ़ से मिलने का बड़ा मुश्ताक़ हुआ। साक़ी ने क़ैदखाने में यूसुफ़ से कहा

'बादशाह ने तुम्हारी रिहाई का हुक्म दे दिया है। वह तुमसे मिलने का बेहद आरजूमंद है। अब तुम मेरे साथ बादशाह की बारगाह में चलो और तमाम फ़िक्र व रंज को बिल्कुल भुला दो।'

हज़रत यूसुफ़ ने कहा, 'ऐसा न होगा। तुम फिर बादशाह के पास जाओ और कहो

"उन औरतों का क्या हाल है जिन्होंने अपने हाथ काटे थे यानी जो

महफ़िल में बेदस्त और बेतदबीर होकर रह गयी थीं ?"

जब बादशाह तक हज़रत यूसुफ़ का यह पैग़ाम पहुँचा तो वह बहुत

हैरान हुआ और साक़ी से इसके बारे में जानना चाहा।

साक़ी ने कहा, “गुलाम इब्रानी है। वह निहायत हसीन और जमील है।

अज़ीज़े मिस्र ने उसे ख़रीदा है। " फिर साक़ी ने हज़रत यूसुफ़ के क़ैद होने और महफ़िल में शशदर होने का तमाम क़िस्सा बयान किया।

बादशाह ने जेलर को बुलाकर हज़रत यूसुफ़ के क़ैद होने की रूदाद

पूछी। उसने कहा

"यूसुफ़ को अज़ीज़े मिस्र ने कैद किया है। यूसुफ़ का हाल यह है कि वह रोज़े से रहता है और शाम को बहुत थोड़ा खाता है और अपना खाना ज़रूरतमंदों और मुहताओं को दे देता है। "

फिर बादशाह ने अज़ीज़े मिस्र को बुलाया और हज़रत यूसुफ़ के बारे में पूछा। उसने कहा, "मैंने इस गुलाम को ख़रीद कर अपना बेटा बना लिया था, लेकिन उससे बड़ी खियानत हुई है, इसलिए उसे क़ैद की सजा दी गई। है

बादशाह ने फिर साक़ी को भेजा और यूसुफ़ को

फिर इनकार कर दिया और कहा

बुलाया,

लेकिन उन्होंने

"मैं तो उसी वक़्त बाहर आ सकता हूँ, जबकि उन औरतों से मेरा हाल पूछा जाए और अज़ीज़े मिस्र को भी सही हक़ीक़त मालूम हो जाए और उसका शुबहा दूर हो । "

बादशाह निहायत हैरान हुआ। उसने उन औरतों को हाज़िर कराया जो जुलैखा की मज्लिस में शरीक हुई थीं। उसने उनसे यूसुफ़ और जुलैखा का हाल पूछा। वे बोलीं, “ख़ुदा की पनाह। हमने तो यूसुफ़ में कोई बुराई नहीं देखी।"

फिर जुलैखा को भी तलब किया गया। उसने कहा

“अब जब बात यहां तक पहुँच गयी है तो मैं सच्ची बात नहीं छिपाऊंगी। हक़ीक़त यह है कि मैंने ही यूसुफ़ को अपनी तरफ़ माइल करना। चाहा था। कुसूर मेरा है। वह अपने किरदार का सच्चा है। "

इस तहक़ीक़ात के बाद हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया

'तहक़ीक़ कराने से मेरी ग़रज़ सिर्फ़ यह थी कि मेरी बेगुनाही जाहिर हो जाए और अज़ीज़ मिस्र भी जान ले कि मैंने उसकी अमानत में कोई खियानत नहीं की। जब मामला रौशन हो गया और हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की पाकबाज़ी सूरज की तरह ज़ाहिर हो गयी और उनको बादशाह की रिहाई का पैग़ाम पहुँचा तो उन्होंने कैदियों को दुआए-खैर दी और कैदखाने से बाहर आए और क़ैदखाने के दरवाज़े पर लिखा, जिसका अरबी तर्जुमा यह है

"हाज़ा अक़बरुल अहयाए व बैतुल अहज़ाने व समातुल आदाए' (यह क़ब्र है ज़िंदों की और घर है ग़मों का और घर है दुश्मनों के ख़ुश होने का ।)

इसके बाद गुस्ल किया और लिबास बदले और बादशाह के ख़ास घोड़े

पर सवार होकर दरबार में पहुँचे।

जब आप पर बादशाह की और अरकाने-दौलत की नज़र पड़ी तो सब बे-इख़्तियार होकर बोल पड़े

'यह मुकर्रम रूह है या मुजस्सम फ़रिश्ता या इन्सान ? ऐसा शख़्स तो न किसी ने देखा होगा, न सुना होगा।'

बादशाह ने आपको एक अच्छे और मुनासिब मकान में ठहराया और गुफ़्तगू की। बादशाह ने आपको हर तरह की खूबियों और कमालों से आरास्ता पाया। फिर कहा, 'मेरे ख़्वाब की ताबीर मेरे सामने बयान करो।'

आपने बादशाह के ख़्वाब की ताबीर बादशाह के सामने बयान की। बादशाह ने कहा, 'अगर्चे मेरा ख़्वाब अजीबो-गरीब है लेकिन तुम्हारी

ताबीर अजीबतर है।'

अब यह बताओ, 'क़हतसाली की मुसीबत से रियाया को कैसे बचाया जाए ?'

हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया, 'मुल्क के तमाम हाकिमों को हुक्म दो कि वह मिस्र के तमाम किसानों को ताकीद करें कि वे खेती के काम में हरगिज़ सुस्ती न करें और अपनी पैदावार में से ग़ल्ला बालियों के साथ क़हत के ज़माने के लिए जमा करें। ग़ल्ला काम में बस उतना ही लाएँ, जितने की कम से कम ज़रूरत हो।' बादशाह फ़िक्रमंद हुआ। इस मुश्किल काम की निगरानी की ज़िम्मेदारी किसको सौंपी जाए, वह कौन शख़्स हो सकता है जो इस अज़ीम मंसूबे को अंजाम दे सके।"

हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया, फ़िक्रमंद न हों। यह काम मेरे सुपुर्द कीजिए। मैं निगरां हूँ, ज़िम्मेदारी को पूरी तरह अंजाम दूंगा।'

बादशाह ने ख़ुशी से यह तज्वीज़ क़बूल कर ली और हज़रत यूसुफ़ को

मुल्क के तमाम खज़ानों और ज़राय-वसायल पर क़ब्ज़ा दे दिया।

अज़ीज़े मिस्र के मरने के बाद हज़रत यूसुफ़ मुख़्तारे-कुल हो गये।

हज़रत यूसुफ़ ने एक लम्बा चौड़ा मकान ऐसा तलाश किया जिसकी ज़मीन में नमी नहीं थी और जिसकी हवा भी मुनासिब थी।

एक इमारत बहुत ही ऊंची और चौड़ी तामीर कराई।

अमीन मुकर्रर किए गए। महसूल सात बरस तक जमा किया गया।

वक़्त के गुज़रते देर नहीं लगती, खुशहाली के सात साल गुज़र गए। तंगी का ज़माना आया। हज़रत यूसुफ़ पेट भर खाना न खाते थे, ताकि भूखे लोगों की याद बाक़ी रहे। क़हत की आग ऐसी फैली कि क्या अमीर क्या ग़रीब, सब दुबले और

लाग़र हो गए।
लोगों के ज़ेवर और बर्तन तक बिक गए। लोगों ने अपने गुलाम और जानवर तक बेच डाले। कितनों की ज़मीन और हवेलियां तक बिक गयीं। हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम रियाया की जानें बचाने की पूरी फ़िक्र करते रहे।

हज़रत यूसुफ़ अलै. के भाई मिस्र में

जब क़हत आम हुआ और गिरानी बढ़ी तो इराक़ और शाम तक के लोग ग़ल्ले के लिए परेशान हुए। कनआन का एक क़ाफ़िला भी ग़ल्ले के लिए मिस्र जाने को तैयार हुआ।

हज़रत यूसुफ़ के भाई भी अपने बाप याकूब की ख़िदमत में पहुँचे। हज़रत याकूब उन दिनों एक अलग मकान में रहते थे। हज़रत यूसुफ़ की जुदाई का ग़म उनके दिल से निकला नहीं था। बेटों ने कहा, 'कहत की वजह से हमारे बाल-बच्चे सब परेशान हैं। किसी तरह का सुकून और राहत बाक़ी नहीं है।'

जब बाप ने बेटों की परेशानी देखी तो उसका ज़ख़्म ताज़ा हो गया। उसने कहा, 'आख़िर तुम्हारी परेशानी का इलाज क्या हो सकता है ?'

बेटों ने कहा, 'सुना है कि अज़ीज़े मिस्र ने ग़ल्ले का अम्बार खोला है और वह लोगों के हाथ ग़ल्ला बेच रहा है। अगर हुक्म हो तो हम भी उसके पास जाएं और जो कुछ थोड़ी बहुत पूंजी है उसे पेश करके कुछ ग़ल्ला हासिल करें ताकि बाल-बच्चों के जान-व-तन का रिश्ता बाक़ी रह सके।'

हज़रत याकूब ने इज़ाज़त दे दी और सबको एक ऊंट देकर रवाना किया। सिर्फ़ बिन यामीन को जो हज़रत यूसुफ़ के हक़ीक़ी भाई थे अपने पास रोक लिया। क़ाफ़िला रवाना हुआ और सफ़र की मंज़िलें तै करता हुआ मिस्र पहुँचा। एक दिन हज़रत यूसुफ़ की मज्लिस में हुक्काम और उमरा जमा थे। हज़रत यूसुफ़ तख़्त पर बैठे थे कि उनके दस भाई ख़िदमत में हाजिर हुए। वह यूसुफ़ को पहचान न सके। अदब और ताज़ीम से आगे बढ़े और इब्रानी

जबान में हजरत यूसुफ़ को सलाम किया।

हजरत यूसुफ ने इसी जवान में उनको जवाब दिया। भाइयों की खस्ताहाली देखकर हजरत यूसुफ बहुत हैरान हुए पूछा, "तुम कहां के रहनेवाले हो, इस मुल्क में कैसे आए हो ?'

वे बोले, 'हम सहराई है।' कहतसाली से परेशान होकर मुल्क शाम से आपकी सखावत और एहसान की शोहरत सुनकर यहां आए है।'

हज़रत यूसुफ़-"शायद तुम जासूस हो हमारी फ़ौज और साज़-व सामान का अंदाजा करने के लिए आए हो ताकि रूम और शाम के बादशाहों को खबर करो और वे हम पर हमला करें।"

भाई बोले, 'ख़ुदा की पनाह, हम जासूस नहीं है। हम पैग़म्बर के बेटे है। हमारे बाप-दादा के रुतबे बुलंद हैं।'

आपने इस्राईल की दावत और इब्राहीम खलीलुल्लाह की करामत के और ज़बीहुल्लाह के मोजज़े के बारे में यक़ीनन सुना होगा। हम तो आपकी खूबियां और फ़ैयाजियों को सुनकर कहतसाली में इधर आए हैं ताकि आपकी सखावत और फ़ैयाज़ी से फ़ायदा उठा सकें।

हज़रत यूसुफ़ क्या तुम्हारा बाप जिंदा है ?

भाई: हां, अभी तो ज़िंदा है।

हज़रत यूसुफ वह कैसा शख़्स है और क्या काम करता है और किस तौर पर उसकी गुजर रही है और तुम कितने भाई हो ?

भाई: हमारा बाप बड़े मर्तबे वाला इब्राहीम खलीलुल्लाह की औलाद है। लक़ब उसका इस्राईल है। उसे ख़ुदा ने नुबूवत बख़्शी है। झूठे ख़ुदाओं

से उसे नफ़रत है। ख़ुदा की याद और ख़ुदा की सोहबत में उसके दिन गुज़रते है। असल में हम बारह भाई थे। हमारा एक भाई जो शक्ल व सूरत में सबसे बेहतर और नबूवत के लायक़ था, हमारी मुहब्बत में जंगल की सैर के

लिए आया था। किसी ज़रूरत से वह हम से अलग हुआ कि अचानक भेड़िया उसको उठा ले गया। बाप ने उसके ग़म में गोशागीरी और तन्हाई इख़्तियार कर ली है। उसके हक़ीक़ी छोटे भाई को अपने पास रख कर अपने ग़म को भुलाने की कोशिश करता है।

हज़रत यूसुफ़ : क्या कोई है जो तुम्हारी सच्चाई की गवाही दे और तुमने जो अपना हसब-नसब बयान किया है उसकी तस्दीक़ बयान करे ?

रोईल: हम शाम की ज़मीन में अमीन और मुस्लिम हैं और हमारा हसब नसब और ख़ानदान जाना-पहचाना और मशहूर है।

हज़रत यूसुफ़ : जब तक हमको साफ़ तौर पर मालूम न हो कि इस मुल्क में आने की तुम्हारी ग़रज़ तिजारत है या फ़िना और फ़साद, तब तक हमको एतिवार न होगा। बेहतर यह है कि तुम यहां से वापस जाने की तैयारी करो और एक भाई को हमारे पास ज़मानत में छोड़ जाओ और दोबारा अपने छोटे भाई को भी लाओ, ताकि तुम्हारी सच्चाई हम पर ज़ाहिर हो सके। भाइयों ने यह बात क़बूल कर ली। हज़रत यूसुफ़ ने उन्हें एक अच्छे मकान में ठहराया और उनकी अच्छे तरीक़े से ख़ातिरदारी की। दूसरे दिन ग़ल्ले की खरीदारी के मौक़े पर हज़रत यूसुफ़ ने पूछा, 'तुम्हारी पूंजी क्या है ?'

जो कुछ वह लाये थे ज़ाहिर किया। हज़रत यूसुफ़ ने कहा, 'तुम्हारी पूंजी तो ख़ज़ाने के लायक़ नहीं है, लेकिन बाज़ार में जो इसकी क़ीमत होगी, हम उससे दो गुना ग़ल्ला तुम्हें देंगे। पूंजी दो दीनार ठहरी।

हज़रत यूसुफ़ ने हरेक भाई को एक-एक ऊंट गेहूँ का लदवा दिया और जो क़ीमत बढ़ रही थी उसे माफ़ कर दिया।

भाइयों ने कुर्रा डाला जो शमऊन के नाम निकला इसलिए ज़मानत में शमऊन को ही मिस्र में ठहरना पड़ा।

रुख़सत होने के वक़्त यूसुफ़ ने भाइयों से कहा,

"अगर

तुम

अपने छोटे

भाई को लाओगे तो उसको भी इसी तरह गेहूँ देंगे, नहीं तो तुम को अब कुछभी न मिलेगा।'

भाइयों ने कहा, 'हम उसे बाप से मांगेंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि उसे अपने साथ यहां ला सकें।' हज़रत यूसुफ़ ने कारिन्दों से कहा, 'इनकी पूंजी चुपके से इनके ऊंटों पर

छुपा कर रख दो।'

हजरत यूसुफ़ को उनकी अमानत पर ऐतिमाद था। उन्होंने सोचा जब ये

लोग वतन पहुँचेंगे और अपनी पूंजी देखेंगे तो इन्हें गुमान होगा कि कारिन्दों

ने

भूलकर इसे रखा है और इसे लौटाने के लिए ज़रूर मिस्र आयेंगे।

जब यूसुफ़ के भाई बाप के पास पहुंचे तो कहा, 'अब्बाजान, आपकी दुआ से अज़ीज़े मिस्र ने हमारी बड़ी मेहमानदारी की और बड़ी इज़्ज़त के साथ हमें ठहराया। जब बाप ने शमऊन के बारे में पूछा कि वह कहां है तो भाइयों ने पूरा वाक्रिया ज्यों का त्यों बयान कर दिया।

जब यूसुफ भाइयों ने बोझ खोला तो अपनी पूंजी ज्यों की त्यों उसमें के रखी पाई। उन्होंने कहा, 'अब्बाजान, हमने आपसे गलत नहीं कहा था। अजीजे मिस्र के अखलाक़ का हाल देखिए कि हमारी पूंजी भी वापस भेज दी हजरत याकूब ने अजीज़ को दुआ दी लेकिन शमऊन के न आने पर फिक्रमंद हुए। बेटों ने 'आप फ़िक्र न करें। शमऊन को तो यामीन के लाने के बदले में रखा है। अब हम यामीन को साथ ले जाएंगे और जैसा हक़ है उसकी हिफाजत करेंगे और ग़ल्ला भी ज्यादा लायेंगे। वरना अजीज़ मिस्र हमको अब ग़ल्ला न देगा।

हज़रत याकूब ने फ़रमाया, 'तुम्हारी बात का क्या ऐतिबार! क्या यूसुफ के हक़ में इससे ज्यादा ताकीद नहीं की थी।' जब बेटों ने बहुत आजिजी की तो फ़रमाया, "तुम क़सम खाओ कि अपने वादे को पूरा करोगे।' इस पर दो बेटों ने क़सम खाई और कहा, 'जहां तक मुमकिन होगा कोई कोताही न करेंगे।"

तब आपने उनकी क़सम क़बूल की और कहा, 'ख़ुदा सबसे बेहतर हिफ़ाज़त करनेवाला है।' और यामीन को साथ ले जाने की इज़ाज़त दे दी और बेटों को ताकीद की कि मिस्र में एक दरवाज़े से सब के सब दाख़िल मत होना बल्कि अलग-अलग दरवाज़ों से शहर में जाना।

रिवायत है कि हज़रत के बेटों से हज़रत याकूब ने एक ख़त अज़ीज़े मिस्र के नाम लिखने के लिए कहा। हज़रत याकूब ने एक ख़त लिखा और एक दस्तार जो हज़रत इब्राहीम से विरासत में पहुँची थी हदिया के तौर पर ख़त के साथ दे दी।

जब ये लोग मिस्र पहुँचे तो बाप की नसीहत के मुताबिक़ अलग-अलग दरवाज़ों से शहर में दाखिल हुए और शमऊन की मेहमानगाह में पहुँचे। शमऊन ने मेहमानदारी की और अज़ीज़े मिस्र की इनायतों का ज़िक्र किया। जब सुबह हुई तो ग्यारह भाई अज़ीज़े मिस्र के दरबार में पहुँचे। जब हज़रत यूसुफ को ख़बर हुई कि इब्रानी भाई आये हैं और हज़रत याकूब का तोहफ़ा लाये हैं, फिर तो

'शादी से हुआ रुख उसका रौशन

हो जैसे गुलबहार में गुलशन।'

फ़रमाया, 'निहायत इज्ज़त और एहतराम से बिठाओ।' फिर हज़रत यूसुफ़ ने भाइयों से हज़रत याकूब का हाल पूछ ।

भाइयों ने कहा, 'पहले तो वह अपने ग़मगीन दिल को बिन यामीन से तसल्ली देते थे और अपने बिछड़े हुए बेटे के ग़म को इस तरह से भूलने की कोशिश करते थे। अब नहीं मालूम उनका क्या हाल होगा। इसके बाद उन्होंने हज़रत इब्राहीम का दस्तार और याकूब का ख़त हज़रत यूसुफ़ की खिदमत में पेश किया। इससे हज़रत यूसुफ़ बहुत खुश हुए और इसे तबर्रुक और रिसालत का तोहफ़ा समझा। जब खाने का वक़्त हुआ और खाना चुना गया तो हज़रत यूसुफ़ ने परदे में तशरीफ़ ले जाकर हुक्म दिया कि एक-एक दस्तरख़्वान पर दो-दो भाई बैठें।


इस हुल्म के मुताबिक़ दे-दो भाई एक-एक दस्तरख्वान पर खाने के लिए बैठ गए और बिन यामीन अकेला रह गया। उसे अपना सगा भाई याद आया। उसकी आंखें आंसुओं से भर गईं।

हजरत यूसुफ ने परदे के पीछे से जब यह देखा तो सब न कर सके और

उसे अन्दर बुलाकर अपने पास बैठाया और फ़रमाया,

'बिन यामीन,

गुमशुदा यूसुफ की बिरादरी की शर्तें मैं पूरी करूंगा और तेरे भाई की जगह मैं

तेरे साथ खाना खाऊंगा।'

बिन यामीन ने कहा, 'इसमें शक नहीं कि हुजूर की बिरादरी का दर्जा बुलंद है। अगर आपको इब्राहीमी खिताब भी हासिल होता तो मेरे दिल की हसरत पूरी होती।

हजरत यूसुफ ने कहा, "वह तेरा भाई जो लेकिन इस राज को भाइयों से मत कहना।" गुम हो गया था, मैं ही हूँ

बिन यामीन खुश हुए और कहा, 'अब तो मैं मिस्र से बाहर न जाऊंगा

और आपकी जुदाई को किसी क्रीमत से राज़ी न होऊंगा।'

हज़रत यूसुफ़ ने भाई को तसल्ली दी और कहा, 'कोई ग़म न करो।'

जब भाइयों के ऊंटों पर गल्ला लादा गया तो अपने भाई के खुरजी में पानी पीने का बर्तन रख दिया।

भाइयों का काफिला मिस्र से रवाना हुआ।

अभी क़ाफ़िला थोड़ी ही दूर गया था कि कारिन्दों ने देखा कि बादशाह के पानी पीने का बर्तन गायब है। उन्हें ख़्याल हुआ कि बर्तन चोरी हो गया है। वह दौड़े और काफ़िलेवालों को पुकारकर कहा, 'तुम चोर हो।'

यूसुफ के भाई बहुत हैरान हुए और कहा, 'क्या बात है?"

कारिंदों ने कहा, 'बादशाह का क्रीमती पैमाना चोरी हो गया है, हमें उसकी तलाश है।'

भाइयों ने क़सम खाई, 'हम चोर नहीं हैं। हम यहां फ़साद करने नहीं आए हैं। देखो हमने तो अपने ऊंटों के मुंह भी बांध दिए हैं ताकि वह किसी के दरख़्त को न खाएँ। तुम हमारे बारे में इस तरह का गुमान क्यों करते हो ?"

कारिंदों ने कहा, 'जिसके ऊँट पर पैमाना निकल आया उसकी क्या सज़ा है?"

वह बोले, 'जिसके पास माल निकलेगा वह मालिके-मुल्क का गुलाम ठहरेगा। हमारे यहां चोर को यही सज़ा दी जाती है। तब मिस्रियों ने सामान की तलाशी लेनी शुरू की।

पहले दूसरे भाइयों के सामान की तलाशी ली और आखिर में बिन यामीन के बोझ को देखा तो पैमाना उसमें से बरामद हो गया। सब के सब बेहद शर्मिन्दा और बिन यामीन से कहा कि हमारा बाप रूहानियों का अमीन (फ़रिश्तों) और आसमान वालों का हमनशीन है। तुझे चोरी करते हुए शर्म न आई कि तूने अपने दामन को इस खियानत से दाग़दार किया।

बिन यामीन ने क़सम खाकर कहा, 'मुझे इसकी बिल्कुल ख़बर नहीं कि यह पैमाना मेरे सामान में किसने रख दिया है।'

वह बोले, 'अगर यह तेरा काम नहीं है तो तेरे सामान में से कैसे निकला ?'

बिन यामीन ने कहा, 'मेरे सामान में यह पैमाना उसने रखा जिसने

तुम्हारी पूंजी छिपाकर रखी थी।' कारिन्दे बिन यामीन को पकड़ कर ले गए।

हज़रत यूसुफ़ के भाई भी हज़रत यूसुफ़ के पास हाज़िर हुए और कहा, 'इसने अगर चोरी की है तो यह कोई हैरत की बात नहीं है। इसके भाई ने भी पहले चोरी की थी।'

हज़रत यूसुफ़ ने दिल में कहा, 'यह कितने बुरे लोग हैं।' यहूदा ने बढ़कर कहा, 'ऐ अज़ीज़, हमारा बाप बूढ़ा और कमज़ोर है।

और हमने उससे वादा किया है कि उसके बेटे को सलामती के साथ उसके पास पहुँचा देंगे। अब हम बग़ैर उसके बेटे के किस तरह उसके पास जाएंगे। मेहरबानी करके इसके बदले में हम में से किसी एक को रोक लीजिए। हम बंदगी का हक़ अदा करेंगे।'

हज़रत यूसुफ़ ने कहा, 'यह कैसे हो सकता है, मैं आज़ाद को बन्दा बनाकर रखूं और किसी बेगुनाह को दूसरे के बदले में गुनहगार ठहराऊं।'

लाचार और मजबूर होकर हज़रत यूसुफ़ के भाई कनआन रवाना हुए। यहूदा ने हज़रत याकूब से पक्का वादा किया था कि वह बिन यामीन की हिफ़ाज़त करेगा इसलिए उसने कहा, मैं तो हरगिज़ घर वापस नहीं जाऊंगा, जब तह कि बाप इज़ाज़त न दे या ख़ुदा मेरे में कोई हुक्म न फ़रमाए। भाई ग़मगीन और मलऊन होकर हज़रत याकूब के पास पहुँचे और उनसे सारा हाल बयान कर दिया।

हज़रत याकूब का ग़म ताज़ा हो गया और उनकी आंखों से आंसू जारी हो गए।

जब एक मुद्दत बिन यामीन की जुदाई में गुज़री तो हज़रत याकूब  ने अज़ीज़े मिस्र के नाम इस मज़मून का एक ख़त लिखाया- 'ऐ अज़ीज़े मिस्र, अल्लाह ने नबियों पर बलाएं नाज़िल की और तरह-तरह से उनकी आज़माइश की। मेरे दादा हज़रत इब्राहीम को आग में डाला गया और उन्होंने सब्र किया। उनके वास्ते ख़ुदा ने आग को गुलज़ार कर दिया। मेरे चचा इस्माईल के गले पर छूरी रखी। मेरा प्यारा बेटा जिसे मैं दिलो-जान से अज़ीज़ रखता था जो मेरे दिल की कुव्वत और आंखों की ठंडक था, उसके भाई उसे जंगल में ले गए और उसकी ख़ून से भरी क़मीज़ मुझे लाकर दिखाई और मुझे खबर दी कि उसको भेड़िया खा गया। मेरा एक दूसरा बेटा जो उस बिछड़े हुए बेटे का हक़ीक़ी भाई था जिसको देखकर मैं अपने दिल को तसल्ली करता था, अब उसके भाइयों ने ख़बर दी है कि उसको अज़ीज़े मिस्र ने गिरफ़्तार कर रखा है। नुबूवत के घरानेवालों को चोरी से क्या निस्बत ।

मुझे तुमसे उम्मीद है कि उस बेटे को वापस कर दोगे ताकि बाप को तसल्ली हो। वह तुझे दुआएं देगा।'

क़ासिद यह ख़त लेकर मिस्र को रवाना हुए और हज़रत यूसुफ़ की खिदमत में यह ख़त पेश किया। हज़रत यूसुफ़ ने जब ख़त पढ़ा तो आंखें नम हो गईं और इस ख़त के जवाब में लिखा- “मैंने ख़त देखा और तुम्हारी परेशानी और ग़म से वाक़िफ़ हुआ। इसका इलाज और इसकी दवा सब्र है। सब्र के अलावा और कोई भी चारा नहीं है। सब्र करो जैसा कि पिछलों ने सब्र किया। इसी तरह अपनी मुराद को पहुँचोगे जैसे वह अपनी मुराद पहुँचे।" को

क़ासिद जब ख़त का जवाब लेकर हज़रत याकूब के पास पहुँचा और हज़रत याकूब ने ख़त पढ़वाकर सुना तो फ़रमाया, यह तो नबियों के कलाम जैसा है। और बेटों से कहा, 'मिस्र जाओ और दोनों भाइयों की तलाश करो। ख़ुदा की रहमत से मायूस मत हो। मुझे तो इस ख़त से ऐसा लगता है कि वह ज़रूर मिलेंगे। इस ख़त से तो मिलने की खुशबू आती है। भाइयों ने तैयारी की और जो कुछ थोड़ी बहुत पूंजी हासिल थी लेकर रवाना हुए। मिस्र पहुँच कर वह हज़रत यूसुफ़ की ख़िदमत में हाज़िर हुए और निहायत आजिज़ी से कहा, 'ऐ अज़ीज़, याकूब का घर भूखा और परेशान है, अगर यह थोड़ी-सी पूंजी क़बूल करें और कुछ अपनी तरफ़ से ज़्यादा दें तो ख़ुदा सदक़ा करनेवालों को ज़्यादा देता है।'

हज़रत यूसुफ़ ने जब यह दर्द भरी बात सुनी तो उनका दिल पिघल गया और फिर वह देर तक अपने को छिपा न सके।

फ़रमाया, “क्या तुम्हें ख़बर है कि तुमने यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या मामला किया ?"

वह बोले, 'क्या आप यूसुफ़ है ?'

हज़रत यूसुफ़ : “हाँ, मैं यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई हैं।"
भाइयों ने कहा, "ख़ुदा की क़सम ! अल्लाह ने हम पर आपको हमारे मुक़ाबले में बुजुर्गों और बड़ाई दी और बेशक हम ख़ताकार हैं।"

हज़रत यूसुफ़ ने कहा, “आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं। ख़ुदा तुम्हें माफ़ करेगा, वही सबसे बढ़कर रहम करनेवाला है। मेरी क़मीज़ ले जाओ और उसे बाप के मुंह पर डाल दो ताकि रौशनी लौट आए। और अपने सब रवालों को लेकर यहां आओ।"

जब सुबह हुई तो यहूदा हज़रत यूसुफ़ की क़मीज़ को लेकर रवाना हुआ। शहर के दरवाज़े से बाहर होकर उसने हज़रत यूसुफ़ की क़मीज़ को झटका दिया। उधर हज़रत याकूब को उसकी खुश्बू महसूस हुई और वह अपने पोतों से बोल पड़े, “अगर तुम मुझे दीवाना न कहो तो मुझे तो यूसुफ़ की महक आ रही है।'

.पीते बोले, “आपको तो वही पुरानी ख़ब्त हैं और यूसुफ़ की मुहब्बत में ऐसे दीवाने हो गए हैं कि ऐसी-वैसी बातें करने लगे हैं।"

अभी चंद ही रोज़ गुज़रे थे कि यहूदा आ पहुँचा और उसने हज़रत यूसुफ़ की क़मीज़ बाप के चेहरे पर डाल दी। हज़रत याकूब की बीनाई लौट आई और उसके मुरझाए हुए जिस्म में कुव्वत और तवानाई दौड़ गई। फ़रमाया, "क्या मैं कहता न था कि मुझे ख़ुदा की तरफ़ से वह सब मालूम है जो तुम नहीं जानते।"

वे लोग बोल, "ऐ अब्बाजान, हमारे लिए अपने रब से माफ़ी की दुआ करें। ख़ुदा तो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहीम है।" हज़रत याकूब ने यहूदा से पूछा, “तूने यूसुफ़ को किस हाल में छोड़ा।" उसने कहा, "यूसुफ़ तमाम मुल्क पर हाकिम है। "

हज़रत याकूब ने फ़रमाया, "मैं मुल्क और हुकूमत की बात नहीं पूछता। तुमने उसे किस दीन और मज़हब पर पाया। "

उसने कहा, "मैंने उसे इब्राहीम के और आपके दीन पर पाया।'

हज़रत याकूब ख़ुश हुए और दुआएं दीं। दूसरे दिन हज़रत यूसुफ़ के क़ासिद पहुँचे। उसके साथ ऊंट और घोड़े की सवारियाँ थीं। वह दर असल हज़रत याकूब और उनके घरवालों को लेने आए थे।

हज़रत याकूब अपने घरवालों के साथ मिस्र रवाना हुए। जाते वक़्त पड़ोसियों के हक़ में दुआ की। पड़ोसी उनकी जुदाई से ग़मगीन और रंजीदाा थे 

जब हज़रत याकूब मिस्र पहुँचे तो हज़रत यूसुफ़ ने उनका इस्तक़बाल किया और उन्हें तख़्त पर बिठाया। उस वक़्त सभी हज़रत यूसुफ़ के आगे झुक गए।

हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया, “ऐ अब्बाजान, यह है मेरे ख़्वाब की ताबीर जो मैंने पहले देखा था।" यह इशारा है उस ख़्वाब की तरफ़ जो हज़रत यूसुफ़ ने बचपन में देखा था, उन्हें चांद-सूरज और ग्यारह सितारे सज्दा कर रहे हैं।

हज़रत यूसुफ़ ने कहा, “मेरे रब ने मेरे ख़्वाब को सच्चा कर दिया। उसने मुझ पर एहसान किया, जबकि उसने मुझे कैदखाने से रिहाई बख़्शी और आप लोगों को देहात से यहां ले आया। हालांकि शैतान ने मेरे और मेरे भाइयों के बीच फ़साद डाल दिया था। बेशक मेरा रब जो चाहता है उसके लिए अच्छी तदबीर करता है। बिला शुबहा वह जाननेवाला और हिकमतवाला है।

हज़रत यूसुफ़ ने दुआ की, “ऐ मेरे रब ! तूने मुझे हुकूमत दी और बातों को तह तक पहुँचाने का इल्म बख़्शा। आसमानों और ज़मीनों को पैदा करनेवाले, तू ही दुनिया और आख़िरत में मेरा कारसाज़ है। मुझे दुनिया से इस हाल में उठाना कि मैं मुस्लिम हूँ और मुझे अपने नेक बंदों में शामिल फ़रमा।"

इसके बाद हज़रत यूसुफ़ और उनके बाप में बातचीत हुई। बाप ने बेटे से अपना हाल बयान किया और बेटे ने बाप से जुदाई के हालात बयान किए। हजरत यूसुफ ने अपने हर भाई के लिए मकान और रोज़गार का इन्तिज़ाम किया। इस तरह बनी इस्राईल (हजरत याकूब के बेटे) फ़राग़त और खुशहाली के साथ रहने लगे।

हज़रत याकूब चौबीस साल तक हजरत यूसुफ के साथ रहे। उनके इन्तिकाल का जब वक़्त आया तो उन्होंने अपने बेटों को ताकीद की कि वे इब्राहीमी मजहब पर कायम रहेंगे और उस ख़ुदा की बंदगी करेंगे जो एक है, जिसका कोई शरीक नहीं।

हज़रत याकूब के इन्तिक़ाल के बाद हज़रत यूसुफ एक अर्से तक जिन्दा रहे। हज़रत यूसुफ के जरिये रिआया को बड़ा आराम मिला। आपकी कोशिश से मिस्र का बादशाह भी मुसलमान हुआ। जब मौत का वक़्त क़रीब आया तो हज़रत यूसुफ ने इमारत और रियासत बनी इस्राईल यहूदा के सुपुर्द ने की और अपने ख़ुदा से जा मिले।             

hazrat loot alaihi salam

                  Hazrat loot alaihi salam

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम जिस क़ौम की तरफ़ भेजे गए, वह बहुत खुशहाल थी। उनकी बस्तियां बहुत आबाद थीं लेकिन यह क़ौम बुराई में डूबी हुई थी। लोग ख़ुदा को छोड़कर बुतों को पूजते थे। बटमारी करते और सबसे बड़ी बुराई इनके यहां यह थी कि वह औरतों को छोड़कर लड़कों के साथ बुरा काम करते थे।

कहा जाता है इस बदफ़ेली का बानी शैतान था। जब उसने चाहा कि क़ौम में यह बुराई फैले तो उसने एक अजीब तरकीब से काम लिया। इब्लीस एक खूबसूरत लड़के की शक्ल में एक बाग़ में आता और हमेशा उसके फल-फूलों को नुक़सान पहुँचाता। बाग़ का मालिक उसे पकड़ने की कोशिश करता, लेकिन वह भागकर बाग़ से निकल जाता। जब बाग़ को बहुत नुक्सान पहुँचा और बाग़ का मालिक परेशान हो गया तो एक दिन इब्लीस ने कहा कि अगर तू चाहता है कि मैं बाग़ में न आऊं तो मेरे साथ यह काम (बुरा फ़ेल) कर और अपने बाग़ की तरफ़ से बेफ़िक्र हो जा।

बाग़ के मालिक ने कहा, "यह तो बहुत अच्छा है और फिर वह इस बुराई में पड़ गया। इस तरह शैतान ने फ़ेले-बद को इस क़ौम में जारी कर दिया।
ख़ुदा की तरफ़ से हिदायत के लिए हज़रत लूत ने लोगों को इस फेले-बद से रोका और उनको हर तरह से समझाया और ख़ुदा का ख़ौफ़ दिलाया और कहा कि अगर तुम बुराई से बाज़ नहीं आते तो ख़ुदा का अज़ाब तुम्हें धर लेगा। लेकिन लोग इतने बेशर्म और बेहया थे कि बोले

'फ़ातिना बेअज़ाबिल्लाह इन कुन्तु मिनस्सादिक़ीन ' 'हम पर ख़ुदा का अज़ाब ला अगर तू सच्चा है।"

हज़रत लूत फिर भी उनको समझाते रहे और उनको ख़ुदा की तरफ़ दावत देते रहे। अपने चचा इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरह हज़रत लूत अलैहिस्सलाम भी मेहमानों की बड़ी इज़्ज़त और खिदमत करते थे। जब हज़रत लूत की क़ौम की बुराई हद से ज्यादा बढ़ गई तो ख़ुदा ने इस क़ौम को 6 मिटा देने का फ़ैसला कर लिया।

कुछ फ़रिश्ते हसीन और खूबसूरत लड़कों की शक्ल में हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के सामने आये हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को सख़् परेशानी हुई। क्योंकि वह अपनी क़ौम की आदत से वाक़िफ़ थे, इसलिए मेहमानों के आने से बहुत रंजीदा हुए। मेहमानों को अपने घर में ठहराया और बीवी से कहा, "किसी को मेहमानों का हाल मालूम न होने पाए।"

लेकिन काफ़िर बीवी ने जाकर लोगों को बता दिया कि उसके घर ऐसे लड़के आए हैं जिनके हुस्न और क़दो-क़ामत की तारीफ़ नहीं की जा सकती। यानी वे हुस्न व जमाल में बेमिसाल हैं। इस ख़बर के सुनते ही बदचलन लोग हज़रत लूत के पास पहुँचे।

हज़रत लूत ने कहा, "मुझे क्यों मेहमानों के सामने फ़ज़ीहत करते हो ? बुराई से बाज़ रहो। अगर चाहो तो बेटियों को अपने निकाह में ले आओ लेकिन मेरे मेहमानों को मत सताओ।'

काफ़िरों ने कहा, “तेरी बेटियों से हमे कोई मतलब नहीं। ऐ लूत! जो हमारा इरादा है उसको तू खूब जानता है।"
फ़रिश्तों ने जब देखा कि हज़रत लूत बहुत परेशान हैं तो ख़ामाशी से उनसे कहा, “आप बेख़ौफ़ रहिए। हम ख़ुदा के फ़रिश्ते हैं। ये लोग नुक्सान नहीं पहुँचा सकते।" कुछ भी

हज़रत जिब्रील ने दरवाज़े से निकल कर अपने परों की हवा लोगों की आंखों में लगायी। वह अंधे होकर गिरते-पड़ते घरों को भागे।

हज़रत लूत को हुक्म हुआ कि वह बस्ती छोड़ दें और पीछे लौटकर न देखें ।

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला ने अज़ाब से बचा लिया। हज़रत लूत की बीवी और काफ़िर क़ौम तबाह और बरबाद हो गयी। ख़ुदा ने बस्ती को तलपट कर दिया। इस क़ौम पर ख़ुदा ने पत्थरों की बारिश की और उसका दुनिया में कोई नामो-निशान बाक़ी न रहा।

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम अपने चचा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास चले गए।

रबीउल अव्वल की दसवीं तारीख़ को उनका इन्तिक़ाल हुआ।

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ismile ahaihi salam

हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम

हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम मुल्क शाम में पैदा हुए। मक्का की ज़मीन में परवरिश पाई। बचपन बाप की जुदाई में गुज़रा, क़बीला जरहम ने जिसे हज़रत हाजरा ने ज़मज़म के चश्मे के पास रहने की इजाज़त दी थी, सात बकरियां दी थीं। हज़रत इस्माईल की बरकत से बकरियों में बड़ी बरकत हुई, जिससे इत्मीनान से हज़रत इस्माईल का काम चलने लगा और उन्हें खुशहाली हासिल हुई।

ख़ुदा के हुक्म से वह लोगों को ख़ुदा की दावत देते रहे और उन्हें गुमराही से बचाने के लिए पूरी कोशिश करते रहे और वे अपने बाप के जानशीन होकर ज़िम्मेदारी पूरी करते रहे। हज़रत इस्माईल की औलाद

बेशुमार हुई। बहुत से लोग मक्के से निकल कर इधर-उधर फैले और मक्के के करीबी इलाक़ों को अपना वतन बनाया। जो शरूस मक्के से गुजरता काबा का तवाफ़ करता। हजरत इस्माईल के

इन्तिकाल के बाद कौम में जिहालत और गुमराही भी फैली। उसने काबा में

पत्थर रख कर उसी की पूजा शुरू कर दी। इस तरह कौम ने बुतपरस्ती का

रिवाज पकड़ा ?

कुछ मामलों में हज़रत इब्राहीम के तरीक़ों पर अमल करते और बैतुल्लाह का हज भी करते लेकिन बुतपरस्ती की वजह से हक़ीक़त में वह इब्राहीमी तरीके से बहुत दूर हो गए। बुतपरस्ती की नहूसत से अरब में तारीकी फैल गयी।

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Hazrat Ali Raziallahu anhu Hazrat Ali golden words

मेरे मोहतरम मेरे अजीज दोस्त एवं भाइयों अस्सलाम वालेकुम आज मैं आपको बताने जा रहा हूं हजरत अली रजि अल्लाह आल्हा की खूबसूरत और बेहतरीन हर्षदा उ...

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