hazrat loot alaihi salam

                  Hazrat loot alaihi salam

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम जिस क़ौम की तरफ़ भेजे गए, वह बहुत खुशहाल थी। उनकी बस्तियां बहुत आबाद थीं लेकिन यह क़ौम बुराई में डूबी हुई थी। लोग ख़ुदा को छोड़कर बुतों को पूजते थे। बटमारी करते और सबसे बड़ी बुराई इनके यहां यह थी कि वह औरतों को छोड़कर लड़कों के साथ बुरा काम करते थे।

कहा जाता है इस बदफ़ेली का बानी शैतान था। जब उसने चाहा कि क़ौम में यह बुराई फैले तो उसने एक अजीब तरकीब से काम लिया। इब्लीस एक खूबसूरत लड़के की शक्ल में एक बाग़ में आता और हमेशा उसके फल-फूलों को नुक़सान पहुँचाता। बाग़ का मालिक उसे पकड़ने की कोशिश करता, लेकिन वह भागकर बाग़ से निकल जाता। जब बाग़ को बहुत नुक्सान पहुँचा और बाग़ का मालिक परेशान हो गया तो एक दिन इब्लीस ने कहा कि अगर तू चाहता है कि मैं बाग़ में न आऊं तो मेरे साथ यह काम (बुरा फ़ेल) कर और अपने बाग़ की तरफ़ से बेफ़िक्र हो जा।

बाग़ के मालिक ने कहा, "यह तो बहुत अच्छा है और फिर वह इस बुराई में पड़ गया। इस तरह शैतान ने फ़ेले-बद को इस क़ौम में जारी कर दिया।
ख़ुदा की तरफ़ से हिदायत के लिए हज़रत लूत ने लोगों को इस फेले-बद से रोका और उनको हर तरह से समझाया और ख़ुदा का ख़ौफ़ दिलाया और कहा कि अगर तुम बुराई से बाज़ नहीं आते तो ख़ुदा का अज़ाब तुम्हें धर लेगा। लेकिन लोग इतने बेशर्म और बेहया थे कि बोले

'फ़ातिना बेअज़ाबिल्लाह इन कुन्तु मिनस्सादिक़ीन ' 'हम पर ख़ुदा का अज़ाब ला अगर तू सच्चा है।"

हज़रत लूत फिर भी उनको समझाते रहे और उनको ख़ुदा की तरफ़ दावत देते रहे। अपने चचा इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरह हज़रत लूत अलैहिस्सलाम भी मेहमानों की बड़ी इज़्ज़त और खिदमत करते थे। जब हज़रत लूत की क़ौम की बुराई हद से ज्यादा बढ़ गई तो ख़ुदा ने इस क़ौम को 6 मिटा देने का फ़ैसला कर लिया।

कुछ फ़रिश्ते हसीन और खूबसूरत लड़कों की शक्ल में हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के सामने आये हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को सख़् परेशानी हुई। क्योंकि वह अपनी क़ौम की आदत से वाक़िफ़ थे, इसलिए मेहमानों के आने से बहुत रंजीदा हुए। मेहमानों को अपने घर में ठहराया और बीवी से कहा, "किसी को मेहमानों का हाल मालूम न होने पाए।"

लेकिन काफ़िर बीवी ने जाकर लोगों को बता दिया कि उसके घर ऐसे लड़के आए हैं जिनके हुस्न और क़दो-क़ामत की तारीफ़ नहीं की जा सकती। यानी वे हुस्न व जमाल में बेमिसाल हैं। इस ख़बर के सुनते ही बदचलन लोग हज़रत लूत के पास पहुँचे।

हज़रत लूत ने कहा, "मुझे क्यों मेहमानों के सामने फ़ज़ीहत करते हो ? बुराई से बाज़ रहो। अगर चाहो तो बेटियों को अपने निकाह में ले आओ लेकिन मेरे मेहमानों को मत सताओ।'

काफ़िरों ने कहा, “तेरी बेटियों से हमे कोई मतलब नहीं। ऐ लूत! जो हमारा इरादा है उसको तू खूब जानता है।"
फ़रिश्तों ने जब देखा कि हज़रत लूत बहुत परेशान हैं तो ख़ामाशी से उनसे कहा, “आप बेख़ौफ़ रहिए। हम ख़ुदा के फ़रिश्ते हैं। ये लोग नुक्सान नहीं पहुँचा सकते।" कुछ भी

हज़रत जिब्रील ने दरवाज़े से निकल कर अपने परों की हवा लोगों की आंखों में लगायी। वह अंधे होकर गिरते-पड़ते घरों को भागे।

हज़रत लूत को हुक्म हुआ कि वह बस्ती छोड़ दें और पीछे लौटकर न देखें ।

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला ने अज़ाब से बचा लिया। हज़रत लूत की बीवी और काफ़िर क़ौम तबाह और बरबाद हो गयी। ख़ुदा ने बस्ती को तलपट कर दिया। इस क़ौम पर ख़ुदा ने पत्थरों की बारिश की और उसका दुनिया में कोई नामो-निशान बाक़ी न रहा।

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम अपने चचा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास चले गए।

रबीउल अव्वल की दसवीं तारीख़ को उनका इन्तिक़ाल हुआ।

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