हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) की पैदाइश


रिवायत करने वाले बयान करते हैं कि जब अपनी ख़िलाफ़त (नायबी) के लिए अल्लाह का इरादा हुआ कि


इन्नी जाअिलुन फ़िल अर्ज़ि ख़लीफ़ा.


मैं ज़मीन में एक ख़लीफ़ा बनानेवाला हूँ


तब हज़रत इज़्राईल को हुक्म हुआ कि हर क़िस्म की लाल-सफ़ेद और काली एक मुठ्ठी रंगा-रंग मिट्टी जमा करके लाये और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ मक्का और तायफ़ के दर्मियान रखी गई अल्लाहन ने उस मिट्टी पर अपनी रहमत की बारिश की और उसी मिट्टी के ख़मीर से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का पुतला तैयार किया साल तक वह पुतला बेजान पड़ा रहा। जब अल्लाह ने चाहा कि हज़रत आदम (अलै.) का सितारा रौशन हो और आदम की औलाद (इंसान) का दर्जा पूरी दुनिया में बुलंद हो, तो रूह को हुक्म हुआ कि आदम के जिस्म में उतर उस नर्म रूह ने सख़्त मिट्टी में जाने से इन्कार किया। रब का हुक्म रूह को पहुँचा कि ऐ जान ! इस बदन में दाख़िल हो। फिर जब रूह आदम के सिर की तरफ़ से दाख़िल हुई तो जिस-जिस जगह पहुँचती जाती, पत्थर बना जिस्म मांस-हड्डी में बदलता चला गया। जब सीने तक पहुँची तो हज़रत आदम ने उठने का इरादा किया, वहीं ज़मीन पर गिर पड़े। शायद इसी लिए कुरआन मजीद में फ़रमाया गया है कि इंसान बड़ा जल्दबाज़ है। उसी हालत में हज़रत आदम ने छींका, अल्लाह की ओर से, इल्हाम हुआ और कहा 'अल्हम्दु लिल्लाह' (तमाम तारीफ़े अल्लाह की हैं)। उस करीम-रहीम ने अपनी रहमत से फ़रमाया 'यर्हमु कल्लाह (अल्लाह आप पर रहमत फ़रमाये)। यह अल्लाह की रहमत का पहला जल्वा था।


इसके बाद अल्लाह के हुक्म से एक फ़रिश्ता बहिश्त से सजा-सजाया जोड़ा लाया, हज़रत को पहनाया और इज़्ज़त के साथ तख़्त पर बिठाया।


नक़ल है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश के वक़्त फ़रिश्ते आपस में कहते कि अल्लाह ख़ाक से पैदा कर के जिस हस्ती को ख़िलाफ़त की गद्दी पर बिठायेगा, तो वह ख़ुदा के नज़दीक हमसे ज़्यादा अज़ीज़ न होगा और ग़ैब के जानने वाले के दरबार में हम जो दिन-रात रहते हैं, हमें उम्मीद है कि हमारा इल्म उससे ज़्यादा होगा। फिर हक़ तआला ने तमाम चीज़ों के नाम हज़रत आदम को सिखला दिये। फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि अगर तुम सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्ते जवाब न दे सके। अपनी ग़लती मानते हुए बोले, पाक है तू, हम तो सिर्फ़ उतना ही जानते हैं, जितना तूने सिखाया, और तुझसे बढ़कर जानने वाला कौन है!


तब अल्लाह तआला ने आदम को ज़ाहिरी और बातिनी कमाल से आरास्ता (सुसज्जित) किया और उसकी इज़्ज़त को बढ़ाने के लिए फ़रिश्तों को, जो हज़रत आदम (अलै.) के तख़्त के चारों तरफ़ लाइनों में अदब के साथ खड़े थे, हुक्म दिया कि आदम को सज्दा करो। तमाम फ़रिश्तों ने हज़रत आदम को सज्दा किया, मगर इब्लीस ने इंकार कर दिया और बोला कि मैं आपसे बेहतर हूँ, इसलिए कि मुझे आग से और आदम को मिट्टी से पैदा किया गया है। उस के इस इंकार से उसपर फिटकार पड़ी और उसे फ़रिश्तों के साथ से अलग कर दिया गया। हज़रत आदम बहिश्त में रहने लगे।


तबीयत में आया कि कोई उनका साथी हो, ज़िंदगी का साथी हज़रत पर ख़्वाब ने ग़लबा किया। इसी बीच अल्लाह ने अपनी कुदरत से आदम (अलै.) के पहलू से हज़रत हव्वा को पैदा कर दिया। जब वह जागे तो देखा कि एक पाक-साफ़ औरत बैठी है, बहुत ख़ुश हुए। पूछा कि तू कौन है ?


हज़रत हव्वा ने कहा कि मैं तेरे बदन का हिस्सा हूँ। अल्लाह तआला ने तेरी पसली से मुझे पैदा किया है।


कहा जाता है। हज़रत हव्वा बहुत ही खूबसूरत थीं। हज़रत की खुशी का ठिकाना न था। हज़रत हव्वा को पाकर सज्द-ए-शुक्र अदा किया। अल्लाह तआला की तरफ़ से अर्श के उठाने वाले और आसमानी फ़रिश्तों के मामने इन दोनों का निकाह हुआ, फिर इन दोनों को हुक्म हुआ कि तुम इसी बहिश्त में रहो, जो चाहो खाओ, मगर उस पेड़ के नज़दीक मत जाना। इशारा गैहूँ के पौधे की तरफ़ था।


इब्लीस ने आदम को सज्दा नहीं किया था और वह निकाल दिया गया था, इसलिए उसे हज़रत आदम से ख़ास तौर से जलन हो गयी थी। वह हमेशा ऐसे उपाय सोचता कि किसी तरह आदम को बहिश्त से निकाले।


इसके लिए पहले वह मोर के पास गया, उससे दोस्ती की और कहा, मेरी दोस्ती के हक़ तुझ पर साबित हैं, हम-तुम एक मकान में रहते भी थे, मेरी दख़्वस्त तुमसे यह है कि मुझे अपने बाजू पर बिठाकर बहिश्त में पहुँचा दो ताकि मैं अपने दुश्मन से बदला ले सकूँ। मोर ने इस काम के करने से इंकार कर दिया और कहा कि तू यह बात सांप से कह।


तब शैतान साँप के पास गया और उसको अपने जाल में फँसा ही लिया। सांप उसको मुंह में रखकर बहिश्त में ले गया।


फिर हज़रत आदम और हव्वा के पास गया और रोना शुरू कर दिया। पूछा, क्यों रोता है? उन्होंने शैतान को पहचाना नहीं था।


शैतान ने कहा, मैं तुमको नसीहत करता हूँ, मुझको तो तुम्हारे रोना आता है कि तुम इस बहिश्त से निकाले जाओगे और ये बहिश्त की नेमतें तुमसे सब की सब ले ली जायेंगी और ज़िंदगी की लज़्ज़त के बजाय मौत के दर्द का मज़ा चखोगे। हाल पर


दोनों ने शैतान की जब ये बातें सुनीं तो बड़ा ग़म हुआ।


इब्लीस ने कहा, अगर तुम मेरा कहना मानो तो तुम • एक पेड़ बताऊँ, अगर थोड़ा फल उसका खाओगे तो हमेशा ज़िंदा रहोगे और मौत की शक्ल कभी न देखोगे।


हज़रत आदम ने पूछा, वह कौन-सा है ?


शैतान ने कहा, वही पेड़ है जिसके खाने से अल्लाह तआला ने मना किया है।


हज़रत आदम ने इस बात को क़बूल नहीं किया कि मैं ख़ुदा की कभी नाफ़रमानी न करूंगा। जब शैतान ने क़सम खाई कि मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ, तो भी वह इस नाफ़रमानी के लिए तैयार न हुए और उठकर चले गये। फिर शैतान ने हज़रत हव्वा की ख़िदमत में जाकर इस तरह उनके दिल में भी वसवसे डाले और सांप ने शैतान के कहने पर गवाही दी।


हज़रत हव्वा ने हज़रत आदम से फ़रमाया कि सांप तो बहिश्त का ख़ादिम है और वह शैतान के हक़ में गवाही दे रहा है, तो मैं पहले इस पेड़ का फल खाती हूँ। अगर कोई बात पड़े तो मेरे वास्ते ख़ुदा से माफ़ी मांग लेना और नहीं तो तुम भी खाओ कि हम तुम दोनों तमाम उम्र बहिश्त की नेमतों को चैन से खाया करें।


जन्नत से निकाले गये


कहा जाता है कि अल्लाह ने शुरू ही में तै कर दिया था कि आदम की


फ़र्माबरदार औलाद बहिश्त में और नाफ़रमान औलाद दोज़ख़ में जाएगी, अगर सबको जन्नत ही में रखना होता तो दोज़ख़ कैसे भरी जाती और आमाल का हिसाब-किताब ही क्यों होता। गेहूँ का पौधा भी इसी आज़माइश के लिए रखा गया था, जो उनके बहिश्त के निकाले जाने की वजह बना।


उलमा ने लिखा है कि जब हज़रत हव्वा ने थोड़े से गेहूँ के फल खा लिए और उनके कहने से हज़रत आदम ने भी कुछ खा लिए तो अभी तक हज़रत आदम के मेदे में गेहूँ पूरी तरह हज़म भी नहीं हुआ था कि बहिश्त का लिबास जिस्म से गिर पड़ा, जिस्म नंगा हो गया। मजबूर होकर इंजीर के पत्तों से जल्दी-जल्दी जिस्म ढांका। हुक्म हुआ कि ऐ आदम! तेरे नंगे होने की वजह क्या है ? कहा, अल्लाह! इसकी वजह यह है कि तेरी मर्ज़ी पर अमल न किया, उस मना किये हुए पेड़ का फल खा लिया। फिर आदम ने यह भी अर्ज़ किया कि यह ग़लती सांप और मोर के बहकाने और क़सम खाने से हुई है, जबकि ये बहिश्त के अमीन और रखवाले हैं।


कहा जाता है कि उस वक़्त सांप शक्ल व सूरत के एतिबार से बहुत ही खुबसूरत था, इस जैसा बहिश्त में कोई जानवर भी न था। अल्लाह तआला ने इस गुनाह की वजह से उसका चेहरा बिगाड़ दिया। मिट्टी धूल को उसका खाना बना दिया और पेट सीने के बल ज़मीन को रगड़ना और छाती को छीलना मुक़द्दर हो गया।


इसी जुर्म के अज़ाब के तौर पर हज़रत हव्वा और उनकी बेटियों को जनने का दर्द दिया, हैज़ (माहवारी) की गंदगी दी और ख़ाविदों के हुक्म में रहना और उनकी ताबेदारी करना तै कर दिया। में


मोर को भी सज़ा मिली, उसकी भी शक्ल बदल गयी, चुनांचे पांव तो बद-सूरती के लिए मशहूर ही हैं।


फिर हुक्म हुआ कि सबके सब बहिश्त से निकलो और ज़मीन पर उतरो और आपस में के दुश्मन बने रहो। इस तरह आदम, हव्वा, एक-दूसरे शैतान, सांप और मोर, सभी जन्नत से जमीन पर जिल्लत और रुसवाई के साथ पहुँचे और सज़ा के तौर पर सब के सब अलग रखे गये।


रिवायत में है कि हज़रत आदम सरानदीप में, हज़रत हव्वा जद्दा में, शैतान सीसतान में, सांप अस्फ़हान में और मोर काबुल में उतारा गया। इसी तरह इब्लीस और आदम की औलाद में हमेशा-हमेशा के लिए दुश्मनी पैदा हो गयी और क़ियामत तक रहेगी।


इस वाक़िया के बाद हज़रत आदम ने चालीस दिन तक न खाना खाया,


न पानी पिया, हज़रत हव्वा की जुदाई से तड़पते रहे। तीन सौ वर्ष तक रोते रहे। और तौबा व इस्तिफ़ार करते रहे। फिर सबसे बड़े रहीम अल्लाह ने अपनी मेहरबानी से हज़रत आदम के


दिल में ये कुछ कलिमे उतारे


रब्बना जलम्ना अन्फु-सन व इल्लम तरिफर लना व तहम्ना ल-न कूनन्न मिनल् खासिरीन. ला इला-ह इल्ला अन्त सुब्हान क व बिहम्दि-क अमिलतु सूअन व जलम्तु नम्सी फ़रिफ़रली ।


"ऐ हमारे रब ! हमने अपने आप पर ज़ुल्म किया है और अगर तूने बख़्शा नहीं और रहम न किया तो हमें ज़रूर ही घाटा उठानेवालों में हो जायेंगे। तेरे अलावा कोई इबादत के लायक नहीं। तू पाक है हर ग़लती से, और तेरी हर पहलू से तारीफ़ है। मैं ने एक ख़ता की और मैंने अपने आप पर जुल्म किया, तो तू मुझे माफ़ कर दे। "


इन कलिमों के पढ़ने के बाद हज़रत जिब्रील आये और गुनाह की माफ़ी की खुशखबरी लाये। हज़रत आदम बहुत खुश हुए। इस खुशी में, अल्लाह का इशारा पाकर, उन्होंने चांद की तरह-चौदह-पन्द्रह तारीख़ों के रोज़े रखे। इन रोज़ों से उनके क़ल्ब को इत्मीनान हुआ और जिस्म को राहत मिली। इस दुआ और रोज़ों की इसी बरकत की वजह से कहा जाता है कि आदम की औलाद में से जो भी इस दुआ को पढ़ेगा और इन तीन रोज़ों की हर महीने में आदत रखेगा, उसके गुनाह माफ़ हो जायेंगे और उसका दिल जो गुनाहों की मुसीबत में स्याह हो रहा है, साफ़ और रौशन हो जाएगा। इसके बाद हज़रत आदम को हुक्म हुआ कि ख़ान-ए-काबा की बुनियाद रखें। हज़रत आदम ने जिबील की तालीम से और फ़रिश्तों की मदद से काबे की बुनियाद रखी और हजरे अस्वद को, जिसे वह अपने साथ बहिश्त से लाये थे और उसमें अहदनामा और क़ौल व क़रार रोज़े अलस्ते' का ख़ुदा ने रखा था, काबे में एक तरफ़ जमाया।


काबा तैयार होने के बाद हज़रत जिबरील ने हज और तवाफ़ के तरीके बताये। हज़रत आदम इन सबसे छुट्टी पाकर हज़रत जिबील के कहने से अरफ़ात पहाड़ पर चढ़े। हज़रत हव्वा भी हज़रत आदम के लिए परेशान थीं, घूमती-फिरती वह अरफ़ात पहुँच गयी थीं। धूप और गर्मी से उनका रंग भी बदल गया था। दोनों एक-दूसरे को न पहचान सके। हज़रत जिब्रील ने एक-दूसरे को पहचनवाया। दोनों का मिलना हुआ।


फिर दोनों अल्लाह की मर्जी के मुताबिक़ सरानदीप को आये। हज़रत जिब्रील ने गेहूँ, रोटी और लकड़ी पहुँचायी, खेती करना सिखाया, दो बैल भेजे और दोनों मेहनत-मशक़्क़त, और लगे। सुकून के साथ रोटी खाने कमाने




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